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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • विनयांजलि_संत शिरोमणि हमारे भगवन 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चरण कमलों में शत–शत वन्दन_नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर

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    विनयांजलि

    संत शिरोमणि हमारे भगवन 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज  के चरण कमलों में शत–शत वन्दन 

    नमोस्तु मोस्तु नमोस्तु गुरुवर

    - अभिषेक जैन अबोध सा-परिवार

     

    विनयांजलि सभा में, आए हुए नगर जन।

    सौभाग्य की है वेला, सौभाग्य के सभी क्षण।।

    गुरुदेव विद्यासागर, भगवान थे हमारे।

    सल्लेखना समाधि, गुरु मोक्ष को सिधारे।१।

     

    जन्मे थे सदलगा में, थी पूर्णिमा शरद की।

    मानों उदित दिवाकर, स्वर्णिम उषा अनहद सी।।

    पितु धन्य है मल्लप्पामाता श्रीमंती जी।

    हर्षित सभी दिशाएं, धरती सहित गगन भी।२।

     

    नौ वर्ष की उमर में, वैराग्य मन में जागा।

    पथ वीतराग सच्चा, प्रभु प्रेम का हो धागा।।

    थी बीस वर्ष आयु, घरबार तज दिया था।

    आचार्य देशभूषणव्रत ब्रह्मचर्य लिया था।३।

     

    यौवन की थी अवस्था, संसार कब सुहाया।

    आचार्य ज्ञानसागर, उत्तम गुरु को पाया।।

    आषाढ़ शुक्ल पंचम, अड़सठ की शुभ तिथि थी।

    अजमेर की धरा पर, दीक्षा दिगम्बरी थी।४।

     

    गुरु ज्ञान ने तराशा, चेतन कृति बनाई।

    विद्याधरों सी विद्या, गुरुदेव से है पाई।।

    तप, त्याग से तपे थे, गुरु ज्ञान से पगे थे।

    विद्या के थे वो सागर, गुरु शिष्य वो सगे थे।५।

     

    इतिहास ने अनोखा, दृष्टांत ये भी देखा।

    गुरु शिष्य बन चुके थे, था दृश्य वह अनोखा।।

    सन उन्नीस सौ बहत्तर, नसीराबाद की धरा पर।

    आचार्य विद्यासागर, और शिष्य ज्ञानसागर।६।

     

    सल्लेखना समाधि, गुरु ज्ञान की कराई।

    सेवा, सहज समर्पण, अद्भुत थी वो विदाई।।

    गुरु शिष्य का उदाहरण, न और दूसरा है।

    ऋजुता हृदय में कितनी, गुरु का ही आसरा है।७।

     

    जिनधर्म की जो धारा, दक्षिण से तब चली थी।

    बुंदेलखंड धरती, उनकी तपस्थली थी।।

    तप, त्याग के सरोवर, बहने लगे सतत ही।

    मुनि आर्यिकाएं दीक्षा, बस मोक्ष की डगर थी।८।

     

    गुरुदेव की कृपा से, उद्धार हो रहा है।

    शिक्षा हो या चिकित्सा, नव मार्ग खुल रहा है।।

    जेलों में जो भी कैदी, सद्मार्ग पर चले वो।

    रोजगार हाथकरघा, आत्मनिर्भर स्वयं बने वो।९। 

     

    आयुर्वेद पद्धति हित, 'पूर्णायु' होवे निर्मल।

    संस्कारवान कन्या, खोले है प्रतिभा-स्थल।।

    जीवों पे करुणा धरकर, गौ शालाएं काफी विकसित।

    सहस्त्रों बरस चलें जो, मंदिर किए वो निर्मित।१०।

     

    सर्वोदयी गुरू ने, इक ज्योत यूं जलाई।

    इंडिया बनेगा भारत, घड़ियां निकट है आई।।

    हिन्दी हो राष्ट्रभाषा, हो एकता परस्पर।

    शिक्षा गुरुकुलों सी, भारत हो आत्मनिर्भर।११।

     

    जिनधर्म के प्रवर्तक, तुमको नमन हमारा।

    भावी हो तुम तीर्थंकर, तुमसे ही है सहारा।।

    मृत्यु महामोत्सव, सबकुछ किया है अर्पित।

    विनयांजलि हमारी, चरणों में है समर्पित।१२।

     

    सादर

    🙏🙏🙏

    अभिषेक जैन 'अबोध'

     


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