श्री विद्यासागर जी गुरुवर हमारे
श्री विद्यासागर जी गुरुवर हमारे,
संसार सिन्धु के तुम हो किनारे ।
माता ‘श्रीमती’ के, कुक्षि रतन हो,
पिता ‘श्री मलप्पा’ के श्रम के सृजन हो।
‘गुरु ज्ञानसागर' ने जिसको सँवारा,
जगत पूज्य, पावन, सुरभिमय सुमन हो।।
मन में बसा दो, तन में समा दो,
सुरभि, जो बताये मुक्ति के द्वारे। श्री विद्या…
‘पिसनहारी मढ़िया’ को अदभुत बनाया,
‘नंदीश्वर’ का सृजन भी कराया।
‘कुण्डलगिरि’ में मंगल रचाया,
‘सिंहद्वार’ पावन शिखर पर बनाया।
‘बड़े बाबा’ के प्रिय ‘छोटे बाबा’,
हमें भी उबारो दे भक्ति, सहारे। श्री विद्यासागर…
‘अमरकण्टक’ जाके सृजन नव कराया,
‘सर्वोदय’ साकार कराया।
‘नेनागिरि’ और ‘थुवौन जी’ जा,
‘सागर’ में ‘भाग्योदय’ बनाया।।
‘मुक्तागिरि’ व 'रामटेक' पावन,
गुंजित जहाँ, पावन स्वर है तुम्हारे। श्री विद्या…
‘कटनी’ का ‘कीर्ति स्तम्भ' प्यारा,
‘समता’, ‘प्रमाण’ ने उन्नत बनाया।
'अहिंसा फुहारे' की शोभा निराली,
‘ध्यान’ ने जाके अनुपम छटा दी।
‘पनागर' के अतिशय भरे देवालय
आभा बिखराते सान्निध्य पाके। श्री विद्या...
‘ललितपुर' का क्षेत्रपाल' प्रांगण निराला,
चतुर्थकाल सम पावन तुमने बनाया।
नगर पथ, जिनालय गली-कूचे तक जा,
कण-कण को नव जीवन दिलाया।
कोटि नमन करते, कलश थाल ले उनको,
चन्दन, अक्षत, फल से सजा के ।श्री विद्या…
‘श्रीअहार जी' व 'पपौरा’ की माटी,
वन्दन कर पुलकित हो जाती।
सारे देश में मंगल बिहार से,
धर्म, क्षेत्र, प्रान्त की सीमा मिटा दी।
‘महुआ', 'गिरनार' से क्षेत्र सारे,
तुम्हारे कमल से चरण को पखारें।। श्री विद्या…
‘देवगढ़’ के प्रस्तर पुनः पूज्य अब हैं,
तुम्हारे ‘सुधा' से बने फिर अमर हैं।
‘करगुवाँ जी' की वो पावन सी माटी,
तुम्हारे ‘क्षमा' के गुणों को है गाती।
‘सेरोंन जी' के ‘जिनबिम्ब न्यारे,
प्रतिध्वनित करते स्वर वे तुम्हारे।। श्री विद्या…
धरा को सजाया, गगन को सजाया,
भारत के कण-कण को सँवारा।
यही कामना है, यही प्रार्थना है,
वर दो, मानव स्वयं को सँवारे। श्री विद्या…
काम को जीतें, क्रोध को जीते,
लोभ, भय और मोह को जीते।
सत्य को पा लें, अहिंसा को पा लें,
सदाचारी बन के ये जीवन बिताये।
दो शक्ति इतनी, हुर आत्मा को,
हर आत्मा, निज को गुरु सम बना ले। श्री विद्या...