जीवन के किसी भी पल में, वैराग्य उपज सकता है,
संसार में रहकर प्राणी संसार को तज सकता है।
कहीं दर्पण देख विरक्ति, कहीं मृतक देख वैरागी,
बिन कारण दिक्षा लेता, को पूर्व जन्म का त्यागी,
निर्ग्रन्थ साधु ही इतने, सदगुण से सज सकता है,
संसार................
आत्मा तो अजर अमर है, हम आयु गिने इस तन की,
वैसा ही जीवन बनता, जैसी धारा चिन्तन की,
वहीं सबको समझा पाता, जो स्वयं समझ सकता है,
संसार..................
शास्त्रों में सुने थे जैसे, वैसे ही देखें गुरुवर,
| तेजस्वी परम तपस्वी, उपकारी विद्यासागर,
जिनकी मृदु वाणी सुनकर, हर प्रश्न सुलझ सकता है,
संसार....................