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मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है

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    विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है,

    ज्ञानाद्रि से निकली है, शिवसागर मिलती है।

     

    इक मूलाचार का कूल, इक समयसार तट है-2

    दोनों होते अनुकूल संयम का पनघट है।

    स्याद्वाद वाह जिसका, दर्शक मन हरती है।

    विद्यासागर............... 

     

    मुनिगण राज हंसा, गुण मणि मोती चुगते-2

    जिनवर की संस्तुतियां पक्षी कलरव लगते

    शिवयात्री क्षालन को, अविरल ही बहती है।

    विद्यासागर....................

     

    नहीं राग द्वेष शैवाल, नहीं फेन विकारो का-2

    मिथ्यात्व का मकर नहीं, नहीं मल अविचारों का

    ऐसी विद्या गंगा, मृदु पावन करती है।

    विद्यासागर.........................

     

    जिसमें परिषह लहरें, और क्षमा की भंवरे हैं-2

    करुणा के फूलों पर भक्तों के भौरें हैं,

    तप के पुल मे से वह, मुक्ति में ढलती है,

    विद्यासागर................... 

     

    (तर्ज - जहाँ नेमी के चरण चुरे...)


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