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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

प्रवीण जैन

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Posts posted by प्रवीण जैन

  1. वंदन है उस  तपस्वी को जो आत्मसाधना के साथ भारत और भारतीयता के लिए निरंतर चिंतनशील हैं.

     

    जैन धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है l जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को वैदिक परंपरा में अष्टम् अवतार माना गया है l भगवान ऋषभदेव की परंपरा में भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हुए है जिन्होंने जैन धर्म-दर्शन को मजबूत आधार प्रदान किया l उनके दिव्य उपदेशों का प्रभाव पूरे भारतीय समाज पर दिखाई देता हैl महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जैसे महान् मानवीय मूल्यों पर आधारित समाज संरचना का सन्देश दिया, साथ ही व्यक्ति की मुक्ति के लिए आत्मानुभूति और कठिन तपश्चर्या का मार्ग बताया l भगवान् महावीर द्वारा निर्दिष्ट मार्ग इतना निर्विवाद और अनुकरणीय है कि विगत 2600 वर्षों से लाखों साधु-मुनियों ने उस पथ पर चलकर समाज का और स्वयं का कल्याण किया l यह भारत भूमि का परम सौभाग्य है कि आज के इस भौतिकतावादी युग में भी महावीर के पथ के अनुयायी अपनी कठिन तपश्चर्या से नई पीढ़ी को आध्यात्मिक सन्देश दे रहे हैं l

    आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज इस महान आध्यात्मिक परंपरा के उत्कृष्ट साधु हैं. जितना सुना है, जाना है और उनके विषय में पढ़ा है ,उसका  निष्कर्ष यही निकला कि इस युग में ऐसे साधू और साधुता के दर्शन अतिदुर्लभ हैं | इस युग में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति का यह सौभाग्य है कि हम इस युग में जन्में हैं, जब उनके दर्शन प्राप्त हो सकते हैं |

    उनके विचार “भारत के विकास और संस्कारयुक्त शिक्षा” को महत्त्व देते हैं | भारत और भारतीयता के स्वप्न को साकार करवाने की अभिलाषा रखने वाले यह संत , आत्मकल्याण के साथ साथ बालिकाओं की शिक्षा, युवाओं के प्रशिक्षण,गौ पालन, बुनियादी रोज़गार हेतु हथकरघा, अहिंसा मूलक जैविक कृषि, समन्वित चिकित्सा व्यवस्था जैसे समाजोपयोगी कार्यक्रमों की  प्रेरणा भी देते हैं l  राष्ट्रोत्थान उनके चिंतन का प्रमुख बिंदु है l इसलिए आचार्यश्री स्वदेशी उद्योग, भारतीय भाषाओं के संरक्षण और स्वदेशी संस्कारों पर अपने प्रवचनों में निरंतर सन्देश देते हैं l हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के भविष्य को लेकर उनकी चिंता हम सभी के समग्र प्रयासों से दूर होगी, ऐसी मैं आशा करता हूँ|

    आचार्य विद्यासागर जी को मुनि दीक्षा लिए 50 वर्ष हो रहे हैं l  आचार्यश्री अपने सैकड़ों आज्ञानुवर्ती साधू-मुनियों,आर्यिकाओं और आस्थावान श्रावकों के माध्यम से निरंतर आत्मसाधना और लोकमंगल के महायज्ञ में सन्नद्ध हैं l अतः अध्यात्म और संस्कृति प्रेमी समूचा भारत इस वर्ष को “संयम स्वर्ण महोत्सव” के रूप में मना रहा है l

    आज विश्व को महावीर के अहिंसा–अपरिग्रह-अनेकांत आधारित जीवन दर्शन की आश्यकता है l आचार्य विद्यासागर महावीर के जीवन दर्शन के साक्षात  प्रतिरूप हैं और इसलिए हम सबके लिए अनुकरणीय हैं l

    पुनः मैं श्रमण परंपरा के महान तपस्वी निर्ग्रन्थ साधक आचार्य १०८ विद्यासागर जी के चरणों में अपनी प्रणामांजलि निवेदित करता हूँ l

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  2. आपने बहुत ही बढ़िया बात लिखी, सभी गुरु भक्तों के लिए अब समय आ गया है कि वे परम पूज्य गुरुदेव के संदेशों को आत्मसात करें, केवल जयजयकार करते रहने से काम नहीं चलने वाला.

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  3. जबलपुर तो मैं आया था, महावीर जयंती के सिलसिले में लेकिन यहां दो अन्य महत्वपूर्ण काम भी हो गए। एक तो शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी से भेंट और दूसरा दयोदय गौशाला का निरीक्षण। स्वरुपानंदजी ने कई बार वादा करवाया था कि जबलपुर के पास एक जंगल में उनका जो आश्रम है, उसमें मुझे अवश्य आना है लेकिन वे आजकल जबलपुर से 40-45 किमी दूर सांकलघाट नामक स्थान के उभय भारती महिला आश्रम में ठहरे हुए हैं, क्योंकि परसों यहां नर्मदा नदी के किनारे मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने ‘नमामि नर्मदे’ उत्सव रखा हुआ था। स्वरुपानंदजी से लगभग 50 साल से पारिवारिक संबंध चला आ रहा है। करपात्रीजी, कृष्णाबोधाश्रमजी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देवजी और स्वरुपानंदजी अक्सर साउथ एक्सटेंशन में मेरे ससुर रामेश्वरदासजी के यहां ठहरा करते थे। मेरी पत्नी वेदवती उन दिनों उपनिषदों पर पीएच.डी. कर रही थीं। इन संन्यासियों के साथ में आर्यसमाजी होते हुए भी सत्संग का आनंद लिया करता था। मेरी पत्नी को कृष्णबोधाश्रमजी और निरंजनदेवजी पढ़ाया करते थे लेकिन स्वरुपानंदजी मेरे मध्यप्रदेश के ही थे और उनके राजनीतिक रुझान भी थे। इसलिए उनसे जुड़ाव ज्यादा रहा। आज भी देश की राजनीति पर उनके साथ विचार-विनिमय हुआ। वे अब 90 वर्ष से भी ज्यादा के हो गए हैं।

    दिगंबर जैन महात्मा आचार्य विद्यासागरजी की प्रेरणा से संचालित यहां दयोदय गौशाला नामक संस्था में पहुंचकर तो मैं चमत्कृत रह गया। ऐसी लगभग 100 गौशालाएं देश भर में काम कर रही हैं। यहां लगभग 1100 गाए हैं। कई गाएं 40-50 किलो तक दूध रोज देती हैं। वे तीन-चार सौ रु. रोज का चारा खाती हैं लेकिन ढाई-तीन हजार रु. रोज का दूध देती हैं। ज्यादातर गाएं ऐसी हैं, जो या तो दूध नहीं देती हैं या बहुत कम देती हैं। उनका लालन-पालन भी पूरे भक्तिभाव से होता है। इन गायों के गोबर और मूत्र का यहां मैंने चमत्कारी उपयोग देखा।

    इस उपयोग के कारण ये गाएं भी आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बन गई हैं। गौरव जैन और डा. सचिन जैन ने इस गौशाला को एक प्रयोगशाला बना दिया है। डा. सचिन पशु चिकित्सक हैं और गौरव व्यवसायी हैं। उन्होंने गोबर से क्या-क्या नहीं बनाया है। गैस और खाद, उपले तो सभी बनाते हैं, इन्होंने गोबर से ऐसे लकड़ी के लट्टे बनाए हैं, जिनको जलाने पर आक्सीजन निकलती है। धुआं और नाइट्रोजन नहीं। ये लट्टे पोले और हल्के होते हैं लेकिन मजबूत भी होते हैं। ये प्रदूषण नहीं फैलाते। गौमूत्र से गौनाइल नामक फिनाइल, मल्हम, अगरबत्ती, बाम, हारपिक-जैसा ग्वारपिक, मच्छर भगाऊ चूर्ण, लोबान आदि कई चीजें भी ये बना रहे हैं। उन्होंने गोबर और गोमूत्र के शोधन के लिए तरह-तरह के इत्र बनाए हुए हैं।

    गायों को रोज खिलाने के लिए वे वैज्ञानिक पद्धति से हरा चारा भी उगाते हैं। उन्होंने गोबर के गमले और कटोरे भी बनाए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि वे गोबर के कप-बस्शी भी बना डालें। मैं अपने देश के वैज्ञानिकों से अपील करता हूं कि वे इन जैन-नौजवानों की मदद करें ताकि देश में गाय की सेवा, मानव-सेवा से भी ज्यादा फायदेमंद हो जाए। अगर ऐसा हो जाए तो कानून बनाए बिना ही गोवध अपने आप बंद हो जाएगा।

    चुनावी सभाओं में तो अब से 60-65 साल पहले मैंने रात-रात भर भाषण दिए हैं लेकिन महावीर जयंती की यह सभा मध्य-रात्रि में हुई। नया अनुभव! इस सभा के श्रोताओं को मैंने महावीर स्वामी के अनन्य योगदान के बारे में मेरे विचार तो बताए ही लेकिन मैंने उनसे निवेदन किया कि वे कम से कम चार आंदोलन चलाएं। शाकाहार (मांसाहार मुक्ति), नशाबंदी, स्वभाषा प्रयोग और पड़ौसी देशों के महासंघ (आर्यावर्त्त) का निर्माण। इन चारों आंदोलनों से भगवान महावीर के सिद्धांतों को अमली जामा मिलेगा। इस आंदोलन को शुरु करने के लिए जैन-श्रेष्ठिगण कम से कम 10 करोड़ रु. का एक न्यास बनाएं और उसे महात्मा विद्यासागरजी के मार्गदर्शन में चलाएं। मैंने हाथ उठवाकर लोगों से प्रतिज्ञा करवाई कि वे अपने दस्तखत अब अंग्रेजी में नहीं, हिंदी में करेंगे।

    -डॉ वेदप्रताप वैदिक

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