चेहरे पर वो बच्चों-सी हसीं , वो झुकी हुई नजर , वो झुकी हुई गर्दन जिनकी, वो प्रवचन का अनोखा तरीका, वो उनकी निराली चर्या, बस क्या कहने हमारे कविवर विद्याधर गुरुवर का तो, जितना भी कहूँ कम है, जो सिर्फ पढ़ा और सुना था, देख भी लिया, ऐसे चलते फिरते तीर्थंकर के चरणों में बार बार, नमोस्तु _/\_
नमोस्तु तुभ्यं , नमोस्तु तुभ्यं , विद्या के सागर नमोस्तु तुभ्यं । हे वीतरागी नमोस्तु तुभ्यं , हे ध्यान मूर्ति नमोस्तु तुभ्यं , आगम प्रणेता नमोस्तु तुभ्यं , परम तपस्वी नमोस्तु तुभ्यं । जीत लिया परीषहों को जिसने, ऐसे जितेन्द्रिय नमोस्तु तुभ्यं !
नमोस्तू गुरुदेव ।
In नमोस्तु गुरुवर
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नमोस्तु तुभ्यं , नमोस्तु तुभ्यं , विद्या के सागर नमोस्तु तुभ्यं । हे वीतरागी नमोस्तु तुभ्यं , हे ध्यान मूर्ति नमोस्तु तुभ्यं , आगम प्रणेता नमोस्तु तुभ्यं , परम तपस्वी नमोस्तु तुभ्यं । जीत लिया परीषहों को जिसने, ऐसे जितेन्द्रिय नमोस्तु तुभ्यं !