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संस्मरण Reviews posted by रतन लाल
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अपने शरीर से जितना बन सके, त्याग-तपस्या का अभ्यास करते रहना चाहिए। जितना त्याग कर सकें, जितनी तपस्या कर सकें, शरीर व साधना के मध्य सन्तुलन बनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। फिर जब समय आए। तो समाधि ले सकते हैं।
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हमारे यहाँ जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का रिवीजन नहीं होता, वैसे ही हम लोग गुरुदेव के निर्णय को बदलने की भावना तक नहीं रखते। वह एक बार जो कह दें, सो कह दें। यह केवल धरती पर आचार्य विद्यासागर का कमाल है, और किसी का नहीं।
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गुरुदेव के चरणों में रात में वैय्यावृत्ति करते-करते कहा- महाराज! आपने कैसे निकाल दिया इन लोगों को? अभी तो यह बहुत छोटे हैं, आपने विहार क्यों करा दिया? गुरुदेव ने रात में इशारा करके कहा- कब तक उंगली पकड़े रहेंगे? फिर कहा- ठोक बजाकर देख लो, मैंने तैयार किया है, तब भेजा है।
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गुरु की आज्ञा पालन ही गुरु का आशीर्वाद है
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भीतरी रस में जो शक्ति है, वह बाह्य बनावटी रस में कहॉ?
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महाराज जी ऐसा कोई संस्मरण सुनाइए जिसमें आचार्य गुरुदेव ने श्रावक की समाधि कराई हो।
In स्वर्णिम यात्रा - मुनि श्री प्रमाण सागर जी
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आध्यात्मिक अनुभव व शक्ति