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आज आचार्यश्रीजी के प्रवचन में उन्होंने कहा - अपव्यय रोकिये, हर एक चीज़ जो आप कर रहे है, चाहे वह पूजन हो, घर गृहस्थी के काम हो, या और कोई काम हो, हमें अपव्यय से बचाना चाहिए| आज भारत में ये बहोत महत्वपूर्ण हो गया है के अपव्यय कैसे कम करे ? हम लोग जरुरत से ज्यादा वस्तुएं जोड़ लेते है| उदहारण के तौर पे उन्होंने गाड़ियों का उदहारण दिया, एक घर में ८ प्रकार की गाड़ियां मिलेगी, जिसकी आवश्यकता नहीं है वह भी मिलेगी | फिर हम रोते है के पार्किंग नहीं मिल रही है| इतनी गाड़ियां होगी तोह पार्किंग कैसे मिलेगी ?
हम पूजन करते वक़्त द्रव्य भी ठीक से चढ़ाये, इधर उधर फैलाये नहीं ताकि उसका अपव्यय न हो | हर काम करते वक़्त सावधानी बहोत जरुरी है| आप सावधान हो तो सयंम टिक पायेगा , असावधानी जहाँ है वहां सयंम नहीं रह सकता| आप सयंम दिवस मना रहे है तो वह भी सावधानी पूर्वक मनाये, कहीं अपव्यय न करे |
आचार्यश्रीजी ने GST का एक नया अर्थ भी बताया, के हम मुनि तो मुनि बनाते ही GST में आ जाते है! G - गोमाटसार, S - समयसार और T - तत्वार्थ सूत्र |
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बारम्बार नमोस्तु , शतवार नमोस्तु , कोटिशः नमन गुरुवर !
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हमें कुछ कदम उठाना चाहिए अभी अपनी खुद की एजुकेशन सिस्टम बनाने का| जहां शिक्षा ही विदेशी हो गयी है तो इंसान कैसे स्वदेशी रह पायेगा या अपनाएगा? हम जब स्वदेशी शिक्षा पढती लाएंगे और अपनाएंगे तभी हम इंडिया से भारत की और बढ़ पाएंगे|
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क्या हम कुछ लोग मिलकर ऐसा कोई गुरुकुल खोल सकते है? बहनो के लिए तो प्रतिभा स्थली जैसी पाठशाला है| मगर हमारे आने वाली पीढ़ी के भाइयों, बच्चो के लिए ऐसी एक पाठशाला खुले जो सिर्फ बोर्ड एक्साम्स का पाठ्यक्रम न लेकर कुछ स्वावलम्बन के विषय जैसे की खेती, पर्यावरण, साहित्य और कला, संस्कृति, औषधि चिकत्सा, व्यवसाय, अर्थनीति, धर्मनीति इत्यादि का पाठ्यक्रम चलाये और वह भी ऐसी जगह जहां पर धरम का मार्ग भी सुकर हो | निसर्ग के बिच में रहकर जो हमारी आनेवाली पीढ़ी सीखेगी वह उनके रोम रोम में जा घुलेगा.
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जय बोलो आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज की जय !!
हम सब लोग आचार्यश्री के प्रति बड़े ही भक्ति, भाव से जुड़े हुए हैं उनका स्वर्णिम दीक्षा दिवस मनाने के लिए | हम खुद को आचार्यश्री और उनके शिष्यों का भक्त मानते जरूर हैं, मगर क्या हम उनके दिखाए गए मार्ग पर चलते हैं? ये तो हर एक को अपने आप में झाँक कर देखने की बात है और तय करना है कि क्या हम आचार्य श्री जी के सच्चे भक्त कहलाने के योग्य कुछ कर रहे हैं ?उनके निर्देशन में चल रहे हथकरघा के उत्पाद हम कितना काम में लेते हैं? उनके निर्देशन में शुरू हुई प्रतिभा स्थली जैसे विद्यालयों में हम में से कितने लोग अपनी बच्चियों को भेजना पसंद करते हैं?
हालांकि यह सब धार्मिक क्रियाएं भी नहीं है, यह तो हमारे रोज मर्रा में लगने वाली जरूरतों में से एक है| फिर भी क्या हम सच्चे मन से उनको अपनाते हैं या अपनाना चाहते हैं?
इसी एक श्रंखला में और एक बात जो आचार्यश्री हमेशा से बताते आये है.. कि इंडिया नहीं भारत कहो.. भारतीय बनो.. भारतीय इस्तेमाल करो.. ! अभी की परिस्थितियों से अगर हमें ऊपर आना है.. सच्चे भारत की ओर आना है तो हमें अपने आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा माहौल देना होगा जिससे कि वह भटके नहीं|
उसके लिए हमें अपने शिक्षण संस्थान खोलने होंगे.. जो कार्य अभी पिछले कुछ सालों से देखने में भी आ रहा है| मगर वह कार्य भी अभी की शिक्षा पद्धति से ही हो रहा है| मूल भारत की शिक्षा पद्धति थी गुरुकुल पद्धति! उसके बारे में अभी भी हम कुछ सशंक से दिखाई देते हैं और उस ओर हम कुछ निष्क्रिय से ही दिखाई देते हैं| इसकी एक वजह है कि हम कान्वेंट के जाल में इतने फंसे हुए हैं कि उससे बाहर निकलना मानो मछली को जल से बाहर निकलना सा मुश्किल नज़र आ रहा है|
फिर भी इस काल में भी कुछ जैनेतर बंधु ऐसे गुरुकुल चला रहे हैं जहाँ भारतीयत्व सिखाया जाता है| जहाँ अंग्रेजी, गणित, अर्थशास्त्र और दूसरे अन्य विषयों के साथ साथ संस्कृत, खेती, स्वाबलंवन जैसी जीवन आवश्यक विषय भी सिखाये जाते हैं| वहाँ कोई फीस भी नहीं ली जाती| सब काम दान से ही होता है| हम जैन लोग भी अगर ऐसा कोई उपक्रम हाथ में लें तो इंडिया से भारत की ओर का तो पता नहीं मगर जैनों को फिर से जैन बनाने में जरूर उपयोग होगा, जो आगे जाकर भारतीयत्व भी जगा देगा|
अगर हम लोग मिलकर यह कदम उठा सकें तो यही होगी आचार्यश्री जी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धा |
नीचे दिए गए संकेत स्थल को जरूर देखें जहाँ एक ऐसा ही उपक्रम बंगलौर के पास तुमकुरु के पास में चल रहा है|
वेबसाइट : http://vidyakshetra.org/
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संयम स्वर्ण महोत्सव के लिए आमंत्रित हैं आपके सुझाव
In संयम स्वर्ण महोत्सव
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हमें (दिगंबर जैन समाज को) गुरुकुलम जैसा कोई पाठ्यक्रम / पाठशाला शुरू करना चाहिए। जिससे भारत को भारत बनाने में हम भी सही अर्थ में जुड़ जाये।
http://www.gurukulamshiksha.org/hindi/