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जो पथसृष्टा हैं, जो युगदृष्टा हैं, जो तत्व चिंतक, आत्म वेेत्ता हैं, जिनको ज्ञायक स्वभाव प्राप्त हैैं, जो होने वाले आप्त हैं।
संयम सम्राट, अहिंसा के अग्रदूत, मोक्षपथ के पथिक, पूज्य गुुरुराज, सन्त शिरोमणि मेरे गुुुुरुवर आचार्य भगवान के चरणों में नमोस्तुु।।?
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आज अवतरण दिवस है उनका जो संसार सागर से 'अब-तरण' कर रहे हैं।
नमोस्तु है, महामनीषी भेद- वैज्ञानिक संत को।
मेरे भगवन को मेरी भावांजलि यद्यपि शब्दों में सीमित नही हो सकती फिर भी मन करता है की उनपर बार बार लिखूं। उनके बिना मेरा हर लेख अपूर्ण है इसीलिए मै तत्पर हूँ उनकी स्तुति करने के लिए।
जन्म लिया, कृतकृत्य किया इस धरती पर किया धर्म प्रचार।
आप सरीखा संत न कोई महिमा जिनकी अपरम्पार।
गुण गाने को तत्पर हूँ पर गाने में असमर्थ रहा
दर्श आपके जब जब करता भाग्य मेरे तब जगे अहा!वसुंधरा कागज़, कलम वृक्ष शाखा हो स्याही सागर
तब भी पार न पाया जा सके आपका हे गुणों के आगर।ऐसे महान ऋषिराज के जन्म दिवस पर हम सब का मंगल हो यही कामना है ।
जैनम जयतु शासनं, वन्दे विद्यासगारम।
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मेरे परम तपस्वी गुरुवर, कर्मों का कर रहे हैं क्षय
परम औदारिक, हितोपदेशी, इस युग के हैं अतिशय।।
मेरे ह्रदय में दीपक बन, जो प्रकाश वो भरते हैं
ऋषिराज विद्यासागर को ,शत शत वंदन करते हैं ।।
गुरुदेव के बारे में कुछ भी कहना इस प्रकार मूढ़ता है जैसे सूरज को दीपक दिखाना।। उनका नाम मात्र 1 बार सुनने से ही मन हर्ष सेे भर जाता है,रोम- रोम पुलकीत हो जाताा है । गुरुदेव की वीतराग छवि आत्मीय सुख देंने वाली है, हमे साक्षषात् तीरथंकर के दर्शन तो नही होते पर गुरुव्र के दर्शन करके अनुभुूूूति होती है की अरिहन्त कैसेे होंंगे । गुरुदेव अनंत उपकारी हैं मैैं भाग्यशाली हूँ की ऐसेे महान आचार्य के युुग में मेरा जन्म हुआ ।
भावना भाता हूँ कि गुरुजी के चरणों में मेरा 1 नही हर जन्म समर्पित हो।।
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तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय 1 प्रतियोगिता क्रमांक 2
In प्रतियोगिताएँ
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