प्रवीण जैन Posted June 6, 2017 Report Share Posted June 6, 2017 जबलपुर तो मैं आया था, महावीर जयंती के सिलसिले में लेकिन यहां दो अन्य महत्वपूर्ण काम भी हो गए। एक तो शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी से भेंट और दूसरा दयोदय गौशाला का निरीक्षण। स्वरुपानंदजी ने कई बार वादा करवाया था कि जबलपुर के पास एक जंगल में उनका जो आश्रम है, उसमें मुझे अवश्य आना है लेकिन वे आजकल जबलपुर से 40-45 किमी दूर सांकलघाट नामक स्थान के उभय भारती महिला आश्रम में ठहरे हुए हैं, क्योंकि परसों यहां नर्मदा नदी के किनारे मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने ‘नमामि नर्मदे’ उत्सव रखा हुआ था। स्वरुपानंदजी से लगभग 50 साल से पारिवारिक संबंध चला आ रहा है। करपात्रीजी, कृष्णाबोधाश्रमजी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देवजी और स्वरुपानंदजी अक्सर साउथ एक्सटेंशन में मेरे ससुर रामेश्वरदासजी के यहां ठहरा करते थे। मेरी पत्नी वेदवती उन दिनों उपनिषदों पर पीएच.डी. कर रही थीं। इन संन्यासियों के साथ में आर्यसमाजी होते हुए भी सत्संग का आनंद लिया करता था। मेरी पत्नी को कृष्णबोधाश्रमजी और निरंजनदेवजी पढ़ाया करते थे लेकिन स्वरुपानंदजी मेरे मध्यप्रदेश के ही थे और उनके राजनीतिक रुझान भी थे। इसलिए उनसे जुड़ाव ज्यादा रहा। आज भी देश की राजनीति पर उनके साथ विचार-विनिमय हुआ। वे अब 90 वर्ष से भी ज्यादा के हो गए हैं। दिगंबर जैन महात्मा आचार्य विद्यासागरजी की प्रेरणा से संचालित यहां दयोदय गौशाला नामक संस्था में पहुंचकर तो मैं चमत्कृत रह गया। ऐसी लगभग 100 गौशालाएं देश भर में काम कर रही हैं। यहां लगभग 1100 गाए हैं। कई गाएं 40-50 किलो तक दूध रोज देती हैं। वे तीन-चार सौ रु. रोज का चारा खाती हैं लेकिन ढाई-तीन हजार रु. रोज का दूध देती हैं। ज्यादातर गाएं ऐसी हैं, जो या तो दूध नहीं देती हैं या बहुत कम देती हैं। उनका लालन-पालन भी पूरे भक्तिभाव से होता है। इन गायों के गोबर और मूत्र का यहां मैंने चमत्कारी उपयोग देखा। इस उपयोग के कारण ये गाएं भी आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बन गई हैं। गौरव जैन और डा. सचिन जैन ने इस गौशाला को एक प्रयोगशाला बना दिया है। डा. सचिन पशु चिकित्सक हैं और गौरव व्यवसायी हैं। उन्होंने गोबर से क्या-क्या नहीं बनाया है। गैस और खाद, उपले तो सभी बनाते हैं, इन्होंने गोबर से ऐसे लकड़ी के लट्टे बनाए हैं, जिनको जलाने पर आक्सीजन निकलती है। धुआं और नाइट्रोजन नहीं। ये लट्टे पोले और हल्के होते हैं लेकिन मजबूत भी होते हैं। ये प्रदूषण नहीं फैलाते। गौमूत्र से गौनाइल नामक फिनाइल, मल्हम, अगरबत्ती, बाम, हारपिक-जैसा ग्वारपिक, मच्छर भगाऊ चूर्ण, लोबान आदि कई चीजें भी ये बना रहे हैं। उन्होंने गोबर और गोमूत्र के शोधन के लिए तरह-तरह के इत्र बनाए हुए हैं। गायों को रोज खिलाने के लिए वे वैज्ञानिक पद्धति से हरा चारा भी उगाते हैं। उन्होंने गोबर के गमले और कटोरे भी बनाए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि वे गोबर के कप-बस्शी भी बना डालें। मैं अपने देश के वैज्ञानिकों से अपील करता हूं कि वे इन जैन-नौजवानों की मदद करें ताकि देश में गाय की सेवा, मानव-सेवा से भी ज्यादा फायदेमंद हो जाए। अगर ऐसा हो जाए तो कानून बनाए बिना ही गोवध अपने आप बंद हो जाएगा। चुनावी सभाओं में तो अब से 60-65 साल पहले मैंने रात-रात भर भाषण दिए हैं लेकिन महावीर जयंती की यह सभा मध्य-रात्रि में हुई। नया अनुभव! इस सभा के श्रोताओं को मैंने महावीर स्वामी के अनन्य योगदान के बारे में मेरे विचार तो बताए ही लेकिन मैंने उनसे निवेदन किया कि वे कम से कम चार आंदोलन चलाएं। शाकाहार (मांसाहार मुक्ति), नशाबंदी, स्वभाषा प्रयोग और पड़ौसी देशों के महासंघ (आर्यावर्त्त) का निर्माण। इन चारों आंदोलनों से भगवान महावीर के सिद्धांतों को अमली जामा मिलेगा। इस आंदोलन को शुरु करने के लिए जैन-श्रेष्ठिगण कम से कम 10 करोड़ रु. का एक न्यास बनाएं और उसे महात्मा विद्यासागरजी के मार्गदर्शन में चलाएं। मैंने हाथ उठवाकर लोगों से प्रतिज्ञा करवाई कि वे अपने दस्तखत अब अंग्रेजी में नहीं, हिंदी में करेंगे। -डॉ वेदप्रताप वैदिक 2 Link to comment Share on other sites More sharing options...
Vaibhav Paratwar Jain Posted June 20, 2017 Report Share Posted June 20, 2017 हमें कुछ कदम उठाना चाहिए अभी अपनी खुद की एजुकेशन सिस्टम बनाने का| जहां शिक्षा ही विदेशी हो गयी है तो इंसान कैसे स्वदेशी रह पायेगा या अपनाएगा? हम जब स्वदेशी शिक्षा पढती लाएंगे और अपनाएंगे तभी हम इंडिया से भारत की और बढ़ पाएंगे| 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sushmajain Posted June 25, 2017 Report Share Posted June 25, 2017 I got a lot of knowledge about gaushalas.Thanks a lot to post this article. Link to comment Share on other sites More sharing options...
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