एक बार आचार्यश्री की कक्षा पूर्ण हुई। मैंने एक भजन बोला नर कर उस दिन की याद कि जिस दिन चल चल होगी, सब धरे रहेंगे भण्डार नार तेरी संगी न होगी। आचार्य श्री ने दृष्टि घुमाइ, बोले- आज सब पकी पकी खिचड़ी खिलाने लगे हैं। जब मैं अलग से नमोऽस्तु करने गई तो कहते हैं- तुमने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया, अब ज्यादा भजन बोलना अच्छा नहीं माना जाता। पहले बोलती थी, अब सभी के सामने नहीं बोलना चाहिए।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव