जब चातुर्मास पूर्ण हुआ, आचार्य श्री का आदेश मिला- सागर में डॉ. पन्नालाल पण्डित जी से इन दोनों को अध्ययन कराओ। कचनबाई हम दोनों सुमन और मैं की संरक्षिका के रूप में सागर पहुँची। मोराजी के एक कमरे में हम तीनों रहते थे। पण्डित जी से अध्ययन करने चौधरनबाई जी के मन्दिर पाश्र्वनाथ मन्दिर आते थे। पण्डित जी कौमुदी व्याकरण, छहढाला, कभी सहस्रनाम के उच्चारण, तो कभी भक्तियों के उच्चारण कराते थे। तो कभी तत्वार्थसूत्र। कम समय में अध्ययन अधिक करवाया। पाणिनीव्याकरण कौमुदी के सूत्र याद कराये, परीक्षायें भी लीं। जिससे जागृतिपूर्वक अध्ययन हो सके। सांझ, दोपहर में महिलाओं की कक्षा लेते थे। उन क्लासों में हम दोनों को बैठाते थे। कहते थे- बिटियाँ, तुम्हें अभी समझ में भले नहीं आयेगा, लेकिन बाद में आयेगा। विद्या कालेन पच्यते विद्या काल से ही पकती है। उनका लक्ष्य था कि आचार्यश्री जी की ब्रह्मचारिणी हैं। इनको पढ़ा-लिखाकर विदुषी बनायेंगे। व्याकरण पढ़ाते समय हर समय यही कहते थे- जैसे सुमित्राबाई सतना वाली (आर्यिका विशुद्धमती जी)विदुषी आर्यिका बनीं। वैसे ही तुमको बनना है। संस्कृत में टीका भी करना। इस प्रकार पण्डित जी का बहुत स्नेह रहा हम दोनों पर। दो वर्ष तक बहुत अच्छा अध्ययन कराया। अनुभव भी बहुत सुनाये। कुछ समय बाद कुसुम रहली (मृदुमती जी) वाली भी आ गई व्रत लेकर। चातुर्मास में हम लोग गुरु के पास जाते थे या कभी ग्रीष्मकालीन वाचना में, तब आचार्य श्री अध्ययन के बारे में पूछते थे।
एक बार की बात है- आचार्यश्री हटा में क्षुल्लकों को कातन्त्ररूपमाला के अस्मद आदि रूपों की सिद्धि करना बता रहे थे। हम दोनों बैठे हुए थे। आचार्यश्री का व्याकरण पढ़ाने का तरीका देख रहे थे। उनकी सरल भाषा, कौमुदी व्याकरण या कातन्त्ररूपमाला व्याकरण सूत्रों की अपेक्षा सरल थी। आचार्य श्री हम दोनों से पूछने लगे-समझ में आ रहा है, कौमुदी व्याकरण पढने वालों को ? मैंने कहा- आचार्यश्री कौमुदी व्याकरण की अपेक्षा यह तो बहुत सरल है। मुझे तो आपका पूरा पढ़ाया याद हो गया। आचार्यश्री बोले- कौमुदी व्याकरण माहेश्वराणी सूत्रों से चलती है, यह नहीं। वह कठिन पड़ती है। यह आचार्य की लिखी है- ब्राह्मी, सुन्दरी को । आदिनाथ ने पढ़ाई थी। बीच में कुछ चर्चा और हुई। फिर उन्होंने कहा- । तुम लोगों का कौमुदी का विषय रहेगा, मेरा कातन्त्ररूपमाला पढ़ाने का विषय रहेगा, तुम लोगों को मैं नहीं पढ़ा पाऊँगा। अगर व्याकरण का विषय बदल दोगी तो मैं तुम लोगों को पढ़ा सकता हूँ। हम दोनों ने कहाआचार्य श्री बदल देंगे। हम लोगों को आप से ही पढना है। इसके सूत्र याद करने में सरल भी हैं। हम लोगों ने संकल्प लिया और कौमुदी का विषय बदल दिया। कुछ समय सागर रहकर आये। फिर सागर नहीं गये पण्डित जी से पढने के लिए।