शंका - महाराजश्री! नमोऽस्तु! आचार्य महाराज जब आप लोगों को संघ में आदेश देते हैं, तो कभी शिष्यों के द्वारा आदेश का अनुपालन न होने पर आचार्यश्री को कैसा लगता है?
- श्रीमती चन्द्रकला पाटनी, राँची
समाधान - देखिए! वह आदेश देते हैं और ऐसा बहुत ही कम होता है कि आदेश का अनुपालन न हो। यदि किसी शिष्य ने उनके आदेश का अनुपालन नहीं किया, टाल दिया तो गुस्सा नहीं करते। एक ही स्टैंड रखते हैं कि दोबारा कोई आदेश नहीं करते और उनके द्वारा आदेश न देना भी एक बहुत बड़ा पनिशमेंट हो जाता है। जब तक पहले का आदेश पालन नहीं किया गया, तब तक वह कोई आदेश नहीं देते। जब मेरा आदेश मानो तो मैं आदेश दूँ। अगर मेरा आदेश ही नहीं मानो, तो आगे का आदेश क्यों दूँ? वह हमेशा कहते हैं- गुरुशिष्य का सम्बन्ध आज्ञा और अनुशासन का सम्बन्ध है। अगर मेरी आज्ञा मांग रहे हो, अनुशासन में चल रहे हो, तब तो मेरा तुम्हारा सम्बन्ध है और अगर तुम उसको मानने को तैयार नहीं तो मैं कौन होता हूँ? इसलिए जब भी उनका कोई आदेश होता है, सब सहर्ष स्वीकार करते हैं। कदाचित् मन के विरुद्ध भी कोई आदेश हो तो भी सारे शिष्यगण इस मनोभाव से उस आदेश को स्वीकार लेते हैं कि गुरु की छाया में रहने के लिए यही एक मार्ग है। वह जो भी आदेश देंगे वह हमारे मन के अनुकूल भले ही न हो, पर हमारे हित के लिए जरूर है और यही बुद्धि हमें मार्ग से जोड़े रखती है।