Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आचार्यश्री का अन्य संघों के आचार्यों-मुनियों के साथ कैसा दृष्टिकोण रहता है ?

       (1 review)

    शंका - गुरुवर! नमोऽस्तु! गुरुदेव! आचार्यश्री का अन्य संघों के आचार्यों-मुनियों के साथ कैसा दृष्टिकोण रहता है ? प्रायः यह कहा जाता है कि वे मिलते नहीं हैं। आप स्पष्ट कीजिए।

    - श्री विकास जैन, मिर्जापुर

     

    समाधान - गुरुदेव हमेशा कहते हैं साधु का सत्कार करो। मुझे स्मरण है शायद कुंथुकुमार जी भी साथ में थे, तब मयंकसागर जी महाराज इधर से निकले थे। कुंथुकुमार जी आपने देखा कि कैसे संघ ने भव्यता से अगवानी की। जो साधु हैं, जो साधना करते हैं, हमारे संघ में उनका हृदय से स्वागत होता है। जो साधु के नाम पर आरम्भ परिग्रहों से जुड़े होते हैं, हमारा संघ उनसे सुरक्षित दूरी रखता है। जहाँ तक अन्य संघों एवं आचार्यों के साथ व्यवहार का सम्बन्ध है, मुझे याद है जब आर्यनन्दी जी महाराज आए थे, तो गुरुदेव ने स्वयं उनकी अगवानी की थी, संघ ही नहीं, वह खुद भी गए थे। इसके अलावा किसी अन्य महान् आचार्य या वरिष्ठ आचार्य के संघ में आगमन की कहानी तो मुझे याद नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि गुरुदेव नहीं मिलते तो मैं पूरी समाज से यह कहना चाहता हूँ कि वह नहीं मिलते तो यह मत कहो कि वह नहीं मिलते, यह सोचो कि क्यों नहीं मिलते? नहीं मिल रहे यानी कुछ है। जहाँ सब कुछ सही है वह हृदय से लगाते हैं। आचार्य धर्मसागर जी महाराज की जब समाधि हुई, वाचना चल रही थी, ललितपुर में संघ था, मैं उस समय उपस्थित था। 1987 की बात है, गुरुदेव ने पूरी वाचना बन्द करके श्रद्धांजलि सभा रखवाई। अजितसागर जी महाराज की जब समाधि हुई ललितपुर में, 1988 में वाचना चल रही थी, उनके लिए विनयांजलि प्रकट की गई। आचार्य कल्पसागर जी महाराज जब बारह वर्ष की सल्लेखना में निरत थे तब मुझे याद है कि आचार्य गुरुदेव ने मेरे सामने ब्रह्मचारी राकेश को कहा कि तुम मेरी तरफ से जाओ और महाराज से मेरी नमोऽस्तु कह कर आओ और उन्हें कहना कि मेरी तरफ से किसी भी प्रकार का कोई विकल्प नहीं रखें। यह आचार्य विद्यासागर का चरित्र है। वे लोग जिन्हें कुछ अता-पता नहीं, जो व्यर्थ में पन्थवाद को हवा देते हैं और समाज में जहर घोलते हैं, वही आचार्य विद्यासागर जी के नाम पर उल्टी-सीधी बातें बोलते हैं। आचार्य विद्यासागर का दृष्टिकोण समझना है तो किशनगढ़ के लोगों से पूछो जब किशनगढ़ की आदिनाथ पञ्चायत ने वहाँ पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया था और उस पञ्चकल्याणक के लिए गुरुदेव उपस्थित हुए थे। कुण्डलपुर स्वर्णिम यात्रा से विहार करके गए। पण्डित मूलचन्द जी लुहाड़िया की उसमें मुख्य केन्द्रीय भूमिका थी और आचार्य महाराज जब किशनगढ़ में प्रवेश किए तो पहले सीधे मुनिसुव्रत जिनालय में गए और वहाँ विराजमान आचार्यकल्प श्रुतसागर जी महाराज के संघ से मिले, फिर जाकर पञ्चकल्याणक स्थल पर पहुँचे। यह आचार्य विद्यासागर का दृष्टिकोण है। समाज को समझने की जरूरत है और आप जब तक इसे नहीं समझेंगे तब तक ऐसे महान् व्यक्तित्व को ठीक तरह से नहीं समझ पाएँगे।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    आचार्यश्री का चिन्तन बहुत ही विराट, विशाल, विस्तृत है उनके चिन्तन को शब्दों में बाँध पाना किसी के  बीएस की बात नही

    Link to review
    Share on other sites


×
×
  • Create New...