शंका - गुरुदेव! नमोऽस्तु! आचार्यश्री के प्रवचन पूरे साल में 10 - 15 बार सुनने को मिल जाते हैं। साक्षात् उनके प्रवचन में देखा जाता है, हजारों की भीड़ होती है और प्रवचन भी इतने गूढ़ होते हैं। कि मेरे जैसे के तो ऊपर से चले जाते हैं। एक-आधी बात ही समझ में आती है, जैसे कि 'सुनते हो', 'समझ रहे हो', 'हओ'। फिर भी हजारों की संख्या वाली भीड़ में पिन ड्रॉप साइलेंस रहता है। ऐसा। क्यों? क्या आकर्षण है?
- श्री अशोक जैन, झिरौता, किशनगढ़
समाधान - ऐसा सहज है, क्योंकि महान् आत्माओं की बात डायरेक्ट नहीं समझी जाती। झरने के पास पानी लेने जाना हो तो सीधे अंजलि नहीं भरी जाती, कोई बर्तन लेकर जाओगे तभी भर पाओगे। इनकी तो 'सुनते हो' समझ में आया। तीर्थंकरो की तो इतनी बातें भी समझ नहीं आतीं। उनकी तो ॐकारमय दिव्यध्वनि होती है। जब तक गणधर उनकी पुनर्व्याख्या न करें, किसी को कुछ समझ में नहीं आता। भले ही समझ में न आए, पर सुनने में आनन्द आता है। गुरुदेव की बात समझ में आए या न आए हमें अपने जीवन की बात समझ में आ जाती है। मैं समझता हूँ वह प्रवचन नहीं देते, आचार्य देशना देते हैं। प्रवचन तो हम लोग बोलते हैं। वह आचार्य देशना है और मुझे लगता है कि अभी वह आचार्य देशना दे रहे हैं। अगले भवों में वही देशना दिव्य-ध्वनि का रूप धारण करेगी। दूसरी बात केवल शब्दों से ही उपदेश नहीं होता मुद्रा से भी बहुत गहरा उपदेश होता है। वह मुँह से बोलते हैं और उसका क्या असर होता है, मुझे नहीं पता। मुझे नहीं मालूम, पर उनकी मुस्कानमय मुद्रा का जो असर होता है, सभी ने अनुभव किया है। यही असर जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है।