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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • क्या आपने कभी आचार्यश्री को असहज होते देखा है ?

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    शंका - गुरुवर! नमोऽस्तु! गुरुवर! मेरा प्रश्न है क्या आपने कभी आचार्यश्री को असहज होते देखा है ?

    - श्री पीयूष जैन, जयपुर

     

    समाधान - देखिए, आचार्य महाराज बहुत ऊँचे साधक हैं। जो उच्च भूमिका में जीने वाले साधक होते हैं वह सहजता से असहज नहीं होते। मैंने उन्हें प्रायः सहज ही देखा है लेकिन मैंने एक बार उन्हें असहज होते देखा। वह एक गंभीर घटना है। घटना 1986 की है, गुरुदेव नैनागिरि में विराजमान थे। संघ में एक मुनिराज थे जो जन्मतः जैन नहीं थे, लेकिन बहुत अच्छी साधना करते थे। गुरुदेव ने उन्हें सीधी मुनिदीक्षा दे दी। बहुत अच्छे साधक, मैंने अपनी आँखों से देखा। रात-रात भर खड़े रहते थे, लेकिन कुछ लोगों के चक्कर में आकर वह शास्त्र की आज्ञा और गुरु की आज्ञा के विरुद्ध कुछ मन्त्रतन्त्र की क्रियाओं में संलिप्त हो गए। सन् 1983 से उनमें कुछ भटकाव शुरु हुआ था। गुरुदेव ने तीन वर्षों तक उनका पूरा स्थितीकरण करने स्वर्णिम यात्रा का प्रयास किया, लेकिन उनको चस्का लग गया था। गुरु से छुपाछुपाकर वही काम करते थे, जो गुरु नहीं चाहते। नैनागिरि की बात है, एक दिन गुरुदेव ने हारे मन से उनसे कहा कि तुम अब मुनि रहने लायक नहीं हो। जबकि कोई अनाचार उन्होंने नहीं किया था, केवल वे क्रियाएँ कीं, जिनका शास्त्र में निषेध है और जो गुरुदेव नहीं चाहते थे। मान्त्रिक क्रियाएँ बहुत करते थे और गुरुदेव ने बड़े भारी मन से उनकी पिच्छी वापस ली। उस दिन मैंने उनको पहली बार असहज होते देखा। उस घड़ी में पण्डित पन्नालाल साहित्याचार्य, दरबारी लाल कोठिया और जगन्मोहनलाल शास्त्री भी वहाँ उपस्थित थे। मैं उन दिनों क्षुल्लक अवस्था में था। उस दिन मैंने गुरुवर को पहली बार और शायद आखिरी बार असहज स्थिति में देखा। उन्होंने कहा- मुझसे चूक कहाँ हुई, मुझे यही समझ में नहीं आया। असहज कोई भी हो सकता है, वे इंसान है, वे भगवान के समान हैं पर अभी भगवान् नहीं हैं। लेकिन यह असहजता अल्पकालिक थी। मुश्किल से मिनिट दो मिनिट का खेल होगा, उसके बाद में बिल्कुल सामान्य हो गए।


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