शंका - गुरुवर के चरणों में नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु! गुरुवर! आचार्यश्री के वैराग्य का कारण बताइए।
- श्रीमती उषा जैन, भोपाल
समाधान - आचार्यश्री के वैराग्य का कोई कारण नहीं, पूर्व भव के संस्कार हैं। यह वैराग्य इस भव से नहीं, अनेक भवों से चला आ रहा है। उनके जीवन में ऐसी कोई घटना नहीं घटी, जिसके कारण उनको वैराग्य हुआ हो। लेकिन कहते हैं पूत के लक्षण पालने में ही दिख जाते हैं, वह बचपन से ही वैराग्यसम्पन्न थे। कहते हैं कि जब वह बड़ी नदियों में तैरा करते थे तो उसमें भी पालथी मारकर ध्यान किया करते थे। यह उनके अन्दर के संस्कार थे। भव-भवान्तरों का यह संस्कार जब किसी का एक साथ फलता है तभी ऐसी ऊँचाई की प्राप्ति होती है।