शंका - हे गुरुवर! आपके चरणों में बारम्बार नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु! गुरुवर! आचार्यश्री के बारे में यह कहा जाता है कि उनके आहार बड़े-बड़े लोगों के यहाँ होते हैं और उनके आहार के बाद उन्हें दान देना पड़ता है। इस चर्चा में कितनी सच्चाई है?
- श्री जिनेन्द्र जैन, उदयपुर
समाधान - आप कहते हो कि आचार्यश्री के आहार बड़े-बड़े लोगों के यहाँ होते हैं, दान देना पड़ता है। मैं इसे पलट कर बोलता हूँ- 'जो भी उनको आहारदान देता है, वह बड़ा हो जाता है और दान देने में सक्षम हो जाता है। मैं एक घटना सुनाता हूँ, सन् 2002 में गुरुदेव का पदार्पण बहोरीबन्द में हुआ। वहाँ अनेक चौके लगे। पहले ही दिन गुरुदेव का आहार वहाँ के पुजारी गोपीचन्द के यहाँ हुआ। गोपीचन्द वहाँ के पुजारी सह मैनेजर थे और सर्वेसर्वा थे। उस समय उनकी पगार साढ़े तीन हजार रुपया प्रति महीना थी। उस व्यक्ति ने स्वर्णिम यात्रा चौका लगाया, गुरुदेव का आहार हो गया। उन्होंने आहार के बाद ग्यारह हजार रुपये का दान किया। सन् 2003 में हमारा चातुर्मास हुआ। हमारे पूरे चातुर्मास में चार महीने उन्होंने चौका लगाया। चौके बहुत थे, दस-दस चौके थे, तब भी उन्होंने चौका लगाया। एक दिन चर्चा में उन्होंने कहा, महाराज! हमने ग्यारह हजार रुपये दान कर दिया। मैंने पूछा- गुरुजी ने कुछ बोला? वह बोला- कुछ नहीं बोला महाराज! हमारे घर में आहार हुआ, हमारे भाव उछल गए और हमने 11000 बोल दिया। महाराज क्या बताऊँ? गुरुजी ने खुद ही व्यवस्था बना दी, उस दिन चना में एक हजार रुपये की तेजी आ गई। बीस बोरा रखे थे, बीस हजार की व्यवस्था हो गई। 'तो यह भाव है, यह सब सवाल वे लोग करते हैं जो एक पैसा नहीं देते। गुरुदेव कभी किसी को एक पैसे के लिए इशारा नहीं करते। लोगों के खुद के हृदय का भाव होता है, जो हृदय खोलकर गुरु चरणों में अर्पित करते हैं। एक बात बताऊँ आपको- बुन्देलखण्ड का एक संस्कार है, जो हमें जानना चाहिए। वहाँ पाँच लाख की गाड़ी में घूमने वाला और पन्द्रह लाख के मकान में रहने वाला आदमी भी एक करोड़ का दान देने के लिए तत्पर हो जाता है। अपनी स्वयं की इच्छा से अगर एक रुपया कमाता है तो 50 पैसा दान दे देता है। यह संस्कार अगर आज सम्पूर्ण भारत में कहीं हैं तो सिर्फ बुन्देलखण्ड में हैं। इसलिए बुन्देलखण्ड समृद्धि के शिखर पर पहुँच रहा है।