शंका - महाराजश्री! नमोऽस्तु! आज की इस पावन बेला में मैं आचार्य श्री विद्यासागर जी को नमन करता हूँ। गुरुवर मैं यह जानना चाहता हूँ कि आचार्यश्री द्वारा इतनी बड़ी संख्या में तीर्थों एवं संस्थाओं की स्थापना की गई। उनकी प्रेरणा से इतना कुछ हुआ है इससे उनकी साधना व सामायिक में विकल्प तो जरूर पड़ते होंगे। समाधान कीजिए।
- श्री अरविन्द अजमेरा, उदयपुर
समाधान - सामान्य आदमियों को ऐसे विकल्प होते हैं, महान् आत्माओं को विकल्प नहीं होते। मैंने उन्हें देखा है वह करते हुए भी नहीं करने जैसे हैं। सामान्य आदमी के अन्दर कर्तृत्व का भाव होता है। वह जो भी जितना कुछ भी मार्गदर्शन, जब जहाँ जितना देना होता है, दे देते हैं और तुरन्त उनका मन बदल जाता है। आचार्य महाराज बहुत उच्च भूमिका के हैं। मैं अपनी बात आपसे कहता हूँ, मैं अपने दिमाग में किसी भी बात को हावी नहीं होने देता जो फाइल जितनी देर के लिए खोलनी है, खोला। बन्द किया तो बन्द, अब वह फाइल तब ही खुलेगी जब मैं चाहूँगा। इसका अनुभव आप रोज के शंका समाधान में कर सकते हैं। एक प्रश्न कहीं का और दूसरा प्रश्न कहीं का, पर क्या कोई मिलावट दिखती है आपको? यह फाइल खुली तो यह फाइल चलेगी, वह फाइल खुली तो वह फाइल चलेगी। उनकी मेण्टल फाइलिंग बहुत ऊँची है। इसलिए इसको अपने दिमाग के लेवल से मत लो। वह महान् सन्त हैं, जो करते हुए भी नहीं करने जैसे