शंका - महाराज जी! नमोऽस्तु! महाराज जी! आचार्यश्री के जितने भी बार दर्शन किए उनके चेहरे पर एक बहुत मन्द सी मुस्कान रहती है और भगवान् के मंदिर में जब हम रोज प्रतिमा के दर्शन करते हैं तो प्रतिमा के चेहरे पर भी एकदम मन्द स्मित रहता है। महाराज जी! मेरा प्रश्न यह है कि यह आचार्यश्री के अन्दर की वीतरागता है। जो उनकी मुस्कान के माध्यम से झलकती है या उनका प्राणी मात्र के प्रति वात्सल्य है जो इस रूप में प्रकट होता है या उनकी ज्ञान की इतनी उच्चता है जो स्मित के माध्यम से हमें नजर आती है। महाराज जी जिज्ञासा शान्त करें।
- डॉ. ज्योति जैन, उदयपुर
समाधान - आपने जितनी बातें कहीं, वे सब उनमें हैं, क्योंकि वह एक आचार्य हैं और आचार्य के अन्दर यही सब होता है। मुझे लगता है आचार्य से ज्यादा ऊपर नहीं, बस आचार्य से थोड़ा ही ऊपर अरिहंत व सिद्ध परमेष्ठी हैं। रास्ता आने वाला है।