एक बार आचार्य महाराज जी ने बताया कि पाठ करते समय मात्र पाठ (शब्दों) की ओर दृष्टि जाने पर लीनता नहीं आती है बल्कि लीनता तो अर्थ की ओर जाने पर आती है। शिष्य ने कहा - लेकिन आचार्य श्री जी अर्थ की ओर चले जाते हैं तो पाठ भूल जाते हैं। आचार्य श्री ने कहा - भूलना तो स्वभाव है। "जैसे ज्ञान आत्मा का स्वभाव है वैसे ही भूलना मनुष्य का स्वभाव है।” मनुष्य तो भूल का पुतला है। दूसरे शिष्य ने कहा - भूलता तो पागल है, आचार्य श्री जी बोले - यह भी एक भूल है, दूसरे को पागल कहना। भूल तो मात्र भगवान् से नहीं होती बांकी सभी से होती है। अन्त में उन्होंने कहा - अनावश्यक को भूलना सीखो तो आवश्यक स्मरण में रहेगा। मनोरंजन में नहीं आत्मरंजन में रहना सीखो |