आचार्य श्री ने कहा - आचार्यों के सूत्रों का अर्थ सूझबूझ के साथ निकालना चाहिए। वरना अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे मशीन के नटवोल्ट की संयोजना अपने ढंग से होती है, वरना विपरीत हो जाता है। एक बार एक व्यक्ति को कुर्ता के स्वरूप का बोध तो था लेकिन उसे पहनने का बोध नहीं था। उसने उसे उल्टा पहिन लिया वह हँसी का पात्र बन गया। वैसे ही हमें शास्त्र का सही-सही ज्ञान रखना चाहिए और उसका सही-सही उपयोग करना चाहिए वरना हँसी के पात्र बनना पड़ेगा एवं अशुभ कर्म का बंध भी होगा।
मोक्ष मार्ग में जो उपदेश देते हैं वह पक्षपात से रहित होकर उपदेश देवें। परमार्थ की सिद्धि के लिए उपदेश देना चाहिए स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं। आज अर्थ (पैसा) के युग में सब कुछ बिक रहा है उपदेश भी और चिकित्सा भी इसलिये तो इसका प्रभाव नहीं पड़ रहा है।