एषणा समिति की चर्चा चल रही थी। बीच में ही पूछ लिया आचार्य श्री जी वैद्यों का कहना है कि हँसते हुये आहार लेना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा - हाँ, प्रशस्तता के साथ आहार लेना चाहिए, दलिया खा रहे हों तो ऐसा लगना चाहिए जैसे हलवा (हलुआ) खा रहे हों। आचार्य श्री जी आपकी बात अलग है, आप तो नीरस को रस बनाने में रस लेते हैं। आचार्य श्री ने कहा नीरस को रस बनाने में अलग ही रस आता है, जिसे दुनिया के पदार्थों में रस आता है उसे नीरस में रस नहीं आ सकता। संसार में रस कहाँ है "संसार तो नीरस है" यदि आत्मा का रस लेना चाहते हो तो संसार के पदार्थों में रस लेना छोड़ दो।