यह उस समय की बात है जब कुण्डलपुर से पंचकल्याणक के बाद सागौनी की ओर विहार हुआ, गर्मी बहुत थी, सड़क भी गरम थी। अचानक रास्ते में पानी बरसने जैसा मौसम हो गया मंद-मंद जलवृष्टि होने लगी मानो देवता स्वागत कर रहे हों। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा मौसम (पानी बरसने वाला) न तो कुण्डलपुर में था और न ही आगे सागौनी में था बल्कि मात्र रास्ते में था। आचार्य श्री जी को दूसरे दिन जब मौसम के बारे में बताया, तब आचार्य श्री जी ने कहा - "देखो जिसका रास्ता सही होता है, सम्यग्दृष्टि होता है, उसका सभी साथ देते हैं। चाहे मनुष्य हो, प्रकृति हो या देवता हो।”