एक बार की बात है आचार्य भगवंत विहार करते हुये एक नदी के पास से गुजरना हुआ, नदी में नाव चल रही थी। इस दृश्य को देखकर आचार्य महाराज ने कहा देखो नदी में नाव तैर रही है और साथ में जो उसका आलम्बन ले रहे हैं, वे भी नदी से पार हो जाते हैं, लेकिन उसी नदी में भंवरे भी उठती हैं, यदि नाव भंवर में फँस जाती है तो डूब जाती है। ठीक उसी प्रकार साधु संसार रूपी सागर में तैर रहा है। उनका आलम्बन लेने वाले भी डूबने से बच जाते हैं, लेकिन यदि साध भी राग-द्वेष रूपी भंवर में फंस गया तो समझो फिर संसार में डूबे बिना नहीं रह सकता। इसलिए हमें संसार में रहते हुए रागद्वेष से बचना चाहिए। तभी हम संसार से पार हो सकते हैं।