शाम का समय था उस दिन आचार्य श्री जी का उपवास था। हम और कुछ महाराज लोग वैयावृत्ति की भावना से आचार्य श्री जी के पास जाकर बैठ गये, तब आचार्य श्री जी ने हँसकर कहा - आप लोग तो मुझे ऐसा घेर कर बैठ गये जैसे किसी पदार्थ, गुड़ आदि के पास चारों ओर चीटियाँ लग जाती हैं | तभी शिष्य ने कहा - हाँ आचार्य श्री जी गलती चींटियों की नहीं है, बल्कि गलती तो गुड़ की है वह इतना मीठा क्यों होता है।
आचार्य श्री जी ने कहा - गुड़ तो गुड़ होता है उसका इसमें क्या दोष। शिष्य ने कहा क्या करें आचार्य श्री गुड़ में मिठास ही कुछ इस प्रकार की होती है | चींटियों को उसकी गंध बहुत दूर से ही आ जाती है और वे इसके पास दौड़ी चली आती हैं। आचार्य श्री ने कहा - यह तो उसका स्वभाव है। शिष्य ने कहा - ऐसा ही आपका स्वभाव है, इसलिये सभी आपके पास दौड़े चले आते हैं।