नेमावर सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र से विहार हुआ। पक्की सड़क से चलते-चलते आ रहे थे, रास्ता मुड़ गया खारदा गाँव की ओर, जो कि कच्चा रास्ता था। मैंने आचार्य श्री से कहा - ये अच्छा मार्ग है, आचार्य श्री ने कहा - भैया यह राजमार्ग नहीं महाराज मार्ग है। (सभी हँसने लगे) मैंने पुनः कहा आचार्य श्री जी यहाँ ट्रॉफिक आदि भी नहीं है, तब आचार्य श्री बोले जब हम शहरों की ओर जाते हैं ट्रॉफिक में चलते हैं तो लगता है हम संयम पाल रहे कि नहीं लेकिन आज साधु लोग शहरों में जाना पसंद करने लगे हैं, क्या करें। आचार्य श्री की निरीहता देखिये वे मात्र संयम की चिन्ता करते हैं चलते, उठते, बैठते उन्हें हमेशा अपने मार्ग की चिन्ता रहती है। भले ही व्यवहार में किसी भी मार्ग (रास्ते) में चल रहे हो।