छिंदवाड़ा से नरसिंहपुर की ओर आ रहे थे, रास्ते में एक गाँव में रुकना हुआ। शाम को विहार करना था सामायिक के बाद कुछ श्रावकगण आचार्य महाराज जी के पास गये और निवेदन किया कि हम श्रावकों को कुछ उपदेश दीजिए। तब आचार्य महाराज ने कहा – हम आप लोगों को क्या उपदेश दें, आप लोगों की जीवन की गाड़ी पटरी से नीचे उतर गयी है। उसे पटरी पर लाने का प्रयास करो, जो गाड़ी पटरी से उतर जाती है, उसे पुनः पटरी पर लाने के लिए बड़ी-बड़ी क्रेन की आवश्यकता पड़ती है। तब एक सज्जन ने कहा इसलिए तो आचार्य श्री हम आप जैसी महान् क्रेन के पास आकर बैठ गये अब आपई जानों। तब आचार्य महाराज ने कहा - भैया क्रेन ऐसई नई मिल जात और क्रेन में खर्चा बहुत लगता है, क्रेन जो गाड़ी काम की होती है (जवान गाड़ी) उन्हीं को उठाती है जो काम में नहीं आती (बूढ़ी गाड़ी) उन्हें नहीं उठाती।
सभी लोग आचार्य महाराज का अभिप्राय समझकर हँसने लगे। क्योंकि आचार्य श्री जवान गाड़ी को ही अपने पास रखते हैं, बुजुर्ग को नहीं। प्रायः जवानों को ही दीक्षा देते हैं।
- स्वाध्याय से संघर्ष का समापन होना चाहिये।
- निरीहता के साथ वस्तुतत्व का प्रतिपादन करने से जिनधर्म की अच्छी प्रभावना होती है।
- अपने जीवन को उपदेशमय बनाइये।
- स्वाध्याय का उद्देश्य मात्र कषायों का शमन करना होना चाहिये। विषयों के प्रति उपेक्षा होना चाहिए।