गर्मी का समय था, विहार चल रहा था। सामायिक के उपरान्त मैं आचार्य गुरूदेव के चरणों के समीप जाकर बैठ गया, नमोस्तु किया। आचार्य श्री जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा - क्यों कुंथु गाड़ी (स्वास्थ्य) ठीक है, आज थोड़ा ज्यादा चलना है। मैंने कहा जी आचार्य श्री जी लेकिन गर्मी बहुत है। ऐसी गर्मी में जमीन बहुत गर्म है, लू चल रही है। इतनी धूप में जल्दी विहार कैसे करेंगे। आचार्य महाराज कुछ चिन्तन करने के बाद बोले - भैया ठंडे दिमाग से चलो भले गर्मी में चलो, कुछ नहीं होगा। "इन्टेन्शन ठीक रखो टेंशन नहीं होगा।” मैंने कहा आप तो हैं हमारा इंटेन्शन सुधारने वाले और टेंशन दूर करने वाले। फिर हमें काहे का टेंशन। (सभी लोग हँस पड़े)। सच बात है गुरु को जीवन समर्पित कर देने के बाद हमें तनाव मुक्त हो जाना चाहिए।
गुरु को नाव
बना बैठा तू, फिर
क्यों तनाव में।
गुरु की वाणी को यदि जीवन में नहीं उतारते हैं तो वह कागज के फूल के समान है जैसे कागज के फूल से नासिका तृप्त नहीं होती वैसे वाणी को सुनने मात्र से जीवन तृप्त नहीं होता है। यदि वाणी को जीवन में आत्मसात् करते हैं तो जीवन फूल की तरह महक उठता है।