विश्वास, लगनशीलता, धैर्य, साहस और दृढ़ता अपने आप में महत्वपूर्ण गुण हैं। इन गुणों को अपनाने वाला कभी भी अपने कार्य में असफल नहीं होता। आत्मविश्वास एवं दृढ़ता एक ऐसा रसायन है, जो निराशावादी मानव के अंदर आशा का सूर्य उगा देता है। अब हम इस संस्मरण के माध्यम से समझें कि दृढ़ता से काम लेने वाले क्या से क्या बन जाते हैं।
यह बात उन दिनों की है जब ब्र0 विद्याधर जी ने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के चरण सान्निध्य में केशलोंच किया। उस समय वे खटाखट केशलोंच करते जा रहे हैं। प्रत्येक बार बाल खींचते समय खून निकल रहा है। उस दृश्य को देखकर कई लोग आश्चर्य में पड़ गये। वहीं पर उपस्थित क्षु.आदिसागर जी ने देखा तब वह आचार्य ज्ञान सागर जी के पास पहुँचे। उनसे निवेदन किया कि महाराज ब्र. जी को खून निकल रहा है। ऐसा सुनकर आ. ज्ञानसागर जी महाराज ने कहा कि चुप रहो। तब क्षु.जी शान्त हो गये, कुछ बोले नहीं। फिर भी क्षु. जी ने ब्र. जी से कहा कि क्यों कैंची मँगवायें, तब ब्र. विद्याधर जी ने कहा 'ऊँ हूँ' ऊंगलियों की चमड़ी उखड़ गयी थी। फिर भी वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे, यही उनकी दृढ़ता का द्योतक है।
यही दृढ़ता ब्र. विद्याधर को आचार्य विद्यासागर बना गयी। मोक्ष मार्ग में दृढ़ता ही महत्वपूर्ण है। दृढ़ता के अभाव में मोक्षमार्ग पर चलना असंभव है। इससे सिद्ध होता है कि - आत्मविश्वास वाला ही आत्मकल्याण कर सकता है। यह संस्मरण आचार्य श्री जी ने मूलाचार गाथा क्र. 99 की वाचना के समय बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की दृढ़ता क्षपक को अपनी समाधि के समय रखनी चाहिए।