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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • युक्ति से मिलती मुक्ति

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    मोक्षमार्ग में युक्ति से काम लेना पड़ता है। यहाँ अंतरंग से कर्मों से युद्ध चलता रहता है। हवा में तलवार चलाने से कभी विजय लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती। ज्ञान और वैराग्य रूपी तलवार एवं ढाल के साथ युद्ध लड़ा जाता है। चारित्र और विशुद्धि को पहले समझो फिर उसे प्राप्त करो। अंतरंग तप के विकास के लिए भगवान् ने बाह्य तप को अपनाया था क्योंकि बाह्य कारण कभी कार्य रूप में नहीं ढलते लेकिन अंतरंग कारण ही कार्य में ढलता है यह सार्वभौमिक नियम है। आचार्य श्री जी का इस प्रकार तप का उपदेश चल रहा था। किसी ने बीच में ही पूछ लिया कि- आचार्य श्री जी फिर क्या बाह्य तप, देव-शास्त्र-गुरु आदि बाह्य निमित्तों को महत्व नहीं देना चाहिए? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि ऐसा नहीं है बाह्य निमित्त तो अंतरंग निमित्त का मित्र होता है। उसके सहयोग से ही कार्य होता है। कार्तिकेय एवं गणेश का उदाहरण देते हुए कहा कि कार्तिकेय के पास तो शक्ति–साधन सब कुछ था इसलिए उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा कर ली लेकिन गणेश का वाहन तो चूहा था। वह कैसे करते इसलिए उन्होंने शिव जी की परिक्रमा लगा कर कह दिया कि- मेरी परिक्रमा पूर्ण हो गई। यह कहलाता है युक्ति से काम लेना। इसी प्रकार तीन लोक के नाथ को समझें, तीन लोक के नाथ गुरु, तप को समझे फिर आत्मा की बात करें।

     

    अंतरंग निमित्त ही बाह्य निमित्त के संयोग से कार्यरूप में ढलता है। इसके लिए आचार्य श्री जी ने आईसक्रीम का उदाहरण देते हुए कहा कि- जैसे आईसक्रीम बनाते समय डिब्बा में दूध-मेवा आदि डाल दिए दूसरे खन में वर्फ, नमक आदि डाल दिए फिर हाथ से चलाना शुरू कर दिया फिर यह होता है कि- बाहरी ठण्डक से भीतर आईसक्रीम बनती जाती है। वह दूध क्रीम आदि में ढ़लता जाता है। इसी प्रकार रत्नत्रय शुद्धोपयोग रूपी क्रीम में ढलने लगता है, शरीर नहीं ढ़लता यह निमित्त-नैमित्तिक सम्बंध है इसी से कार्य की सिद्धि होती है। एक ही डिब्बे में सब कुछ डाल दो तो आईसक्रीम नहीं जमेगी। युक्ति से काम लेना पड़ता है, ऐसा ही बाहय और अंतरंग तप तपते समय युक्ति (विवेक) से काम लेना पड़ता है, क्योंकि बाहय तप अंतरंग तप में वृद्धि करते हैं। युक्ति से ही मुक्ति मिलती है।


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