आचार्य श्री जी ने एक बार बताया कि संसार में सबसे दुर्लभ वस्तु है- सच्ची श्रद्धा। हमारे मंत्रों में बहुत शाक्ति विद्यमान है, लेकिन यह मंत्र आज काम क्यों नहीं करते? क्योंकि जैनियों को णमोकार मंत्र पर श्रद्धा नहीं है। अन्य जगह विश्वास रखते है। यदि कोई जैनी हमारे पास आकर मंत्र मांगता है तो हम कह देते हैं। णमोकार मंत्र पढ़ो इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं है तो वह कह देते हैं। यह मंत्र तो हम फेरते हैं, जपते हैं। मतलब यह हुआ कि मात्र जपते हैं, उस मंत्र पर विश्वास नहीं रखते।
जैनियों के मंत्र पर विश्वास रखने वाले मुसलमान बंधु भी बिच्छु, सर्प आदि ने किसी व्यक्ति को काट लिया हो तो उसका जहर उतार देते हैं (दूर कर देते हैं)। उनसे पूछो, आपने तो बड़ा चमत्कार कर दिया तो वह कहते हैं आप लोगों के णमोकार मंत्र ने चमत्कार किया है, मैंने कुछ नही किया। मैंने तो णमोकार मंत्र पढ़कर हाथ फेर दिया जहर उतर गया।
जैनियों की बात तो ऐसी हो गई कि- एक व्यक्ति के घर में दो T.V. थी। एक स्वयं के मेहनत के पैसों से खरीदी थी और दूसरी दहेज में मिली थी। उसके बेटे ने एक दिन आकर कहा- पिताजी T.V. बिगड़ गई। पिता ने पूछा- कौन-सी दहेज वाली कि अपनी। बेटे ने कहा- दहेज वाली। पिताजी कहते है बिगड़ तो जाने दो आखिर है भी तो दहेज की। बस यही दशा जैनियों की है। उन्हें णमोकार मंत्र जन्म से ही जैन कुल में प्राप्त हुआ है, इसलिए उसे दहेज में मिला है ऐसा समझकर पढ़ लेते हैं। श्रद्धा तो अंजन चोर जैसी होनी चाहिए।