दयोदय तीर्थ क्षेत्र तिलवारा घाट जबलपुर में चातुर्मास चल रहा था। एक सरदार दम्पत्ति गुरूवर के दर्शन के लिए आये। दर्शन करके गुरूवर से हाथ जोड़कर निवेदन करते हुए कहने लगे कि गुरुजी हम लोगों को शादी किए बहुत समय हो गया पर कोई संतान नहीं है। आप आशीर्वाद दीजिए ताकि हमारी मनोकामना पूर्ण हो जाए। आचार्य श्री जी यह सुनकर हँसने लगे क्योंकि आचार्य श्री तो मोक्षमार्ग पर बढ़ने के लिए आशीर्वाद देते हैं। मोहमाया में फंसने के लिए नहीं। वह सरदार यह कहकर चले गए कि हमने तो आपके सामने अर्जी लगा दी अब आपकी मर्जी है कि आपको क्या करना है। हम तो आपके ही भरोसे हैं।
लगभग एक वर्ष के उपरांत आचार्य श्री जी बहोरीबंद क्षेत्र पर विराजमान थे। तब वही सरदार दम्पत्ति एक बच्चा गोद में लेकर आये और आचार्य श्री जी के चरणों में उस बच्चे को रख दिया। आचार्य श्री जी ने आशीर्वाद दिया। सरदार बोले यह लड़का बोलता, देखता नहीं है, एकदम शांत पड़ा रहता है, दूध भी ढ़ग से नहीं पीता। आपने ऐसा बच्चा क्यों दिया? इसे आप ही रख लो या फिर इसे ठीक कर दो। यह सुनकर आचार्य श्री जी फिर हँसने लगे और मुस्कराते हुए आशीर्वाद दे दिया। दो तीन दिन के बाद वह सरदार दम्पत्ति पुनः आ गए और गुरूवर के दर्शन करके बोले आपके आशीर्वाद ने तो चमत्कार कर दिया। हमारा बच्चा अब हँसता है, दूध भी अच्छे से पीता है। बस ऐसी ही कृपा हमेशा हमारे परिवार पर बनाये रखना।