साधु वह होता है जो कभी भी किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। किसी भी व्यक्ति नेता या पार्टी का पक्ष नहीं लेता एवं सभी को समान दृष्टि से देखता है। इसी प्रकार का एक प्रसंग है। एक बार आचार्य श्री ने कहा कि चुनाव के समय कुछ नेता लोग हमारे पास जीतने का आशीर्वाद लेने आते हैं। सब अपने-अपने पक्ष की बात करते हैं। दूसरों को विपक्ष कहते हैं। अपनी पार्टी की प्रशंसा करते हैं और दूसरी पार्टी की निंदा करते हैं। पर मैं तो कह देता हूँ कि- पक्षपात पक्षाघात (लकवा) रोग से भी खतरनाक होता है। इसलिए अपने-अपने पक्ष की बात मत करो तो हमारा आशीर्वाद है।"
राष्ट्र का सच्चा हितैषी वही होता है जो पक्ष–विपक्ष को गौण करके राष्ट्रीय पक्ष की बात करता है। आगे इस बात को अध्यात्म में ढालते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- जो ज्ञान यहाँ-वहाँ की बातें करता है। मन और इन्द्रियों का पक्ष लेता है वह सच्चा ज्ञान नहीं माना जाता है। सम्यग्ज्ञान वही माना जाता है जो आत्मा का पक्ष रखता है, आत्मा के बारे में सोचता है। आचार्य श्री ने पक्षपात के बारे में लिखा भी है कि -
पक्ष व्यामोह,
लौह पुरुष का भी
लहू चूसता।
अंत में आचार्य श्री जी ने कहा कि- यदि नेताओं के पास दया नहीं है, गुणवत्ता नहीं है तो कोई लायक नहीं फिर नायक कैसे बनेंगे।कुर्सी, पद तो मात्र औपचारिकता है। जहाँ कर्तव्य होता है, वहाँ सारे पद गौण हो जाते हैं। योग्यता के बिना पद का क्या मूल्य? राष्ट्रीयता क्या है जिसे इसका ज्ञान नहीं है तो वह राष्ट्र कैसे चलाएगा? पक्ष तो पक्षपात का विषय है, जिससे खतरा पैदा होता है, वह चाहे नेताओं की पार्टी का हो या धर्मात्माओं के निश्चयनय या व्यवहार नय का हर प्रकार के पक्षपात से हट जाना ही श्रेयस्कर है। जब तक चुनाव नहीं हो जाता तब तक दो-तीन पार्टियाँ रहती हैं, लेकिन मतदान के उपरांत सभी पर्टियाँ मिलकर राष्ट्रीय पक्ष में ही कार्य करती हैं। जो राष्ट्र का भला चाहता है वह पार्टी की चिंता नहीं करता, उससे चिपकता नहीं है।