एक बार सप्रतिष्ठित वनस्पति- जमीकंद, गणन्त का प्रकरण चल रहा था तब किसी ने कहा कि- आचार्य श्री जी आज कल बड़े-बड़े विद्वान भी जमीकंद आदि सप्रतिष्ठित वनस्पति का त्याग नहीं कर पाते क्या वे लोग श्रावकाचार आदि आचरण परख ग्रंथों का स्वाध्याय नहीं करते हैं। तब आचार्य श्री जी ने उन विद्वानों की आलोचना न करते हुए हँसते हुए एक ही बात कही कि- "आज पंचम काल में प्रतिष्ठित व्यक्ति भी सप्रतिष्ठित वनस्पति खा रहा है।" इस छोटी-सी बात से हमें बहुत बडी शिक्षा मिलती है कि हमें किसी की कमजोरी पर हंसना नहीं चाहिए एवं उसकी निंदा भी नहीं करना चाहिए। हो सके तो सामने वाले को मधुर शब्दों से उसकी गलती का एहसास कराना चाहिए।