धन एवं ज्ञान दोनों का सदुपयोग करने वाला बहुत सशक्त होता है। निर्जरा का स्रोत खोलना ज्ञान के सद्भाव में बहुत ही गजब खोपड़ी का काम होता है। उस समय अपना उपयोग बहुत सम्हाल के काम करना होता है इसको प्रत्येक व्यक्ति प्राप्त करने के लिए समर्थ नहीं हो सकता है। धार्मिक अनुष्ठान मात्र कर्म निर्जरा के लिए होता है। जितना अधिक तप किया जाएगा उतनी ही विशेष कर्म निर्जरा बढ़ती जाती है। तब कभी भी लौकिकदृष्टि फल प्राप्ति के लिए नहीं किया जाता तो फिर स्वाध्याय को लौकिक दृष्टि से करने से क्या लाभ? आजीविका के लिए स्वाध्याय कभी भी नहीं करना चाहिए। अर्थ प्राप्ति के लिए तो बहुत से लौकिक कार्य हैं। धार्मिक अनुष्ठान कभी भी अर्थ प्राप्ति हेतु नहीं करना चाहिए किन्तु धर्म की प्राप्ति के लिए तप स्वाध्याय आदि करना चाहिए।
किसी ने आचार्य श्री जी के समक्ष शंका रखते हुए कहा कि कुछ प्रवचनकार ऐसे हैं जो किसी नगर या गाँव में पर्युषण पर्व आदि में प्रवचन करने जाते हैं तो विदाई के समय टीका (पैसा) की कामना करते हैं तो क्या यह उचित है? आचार्य श्री जी ने कहा कि- कोईभी धार्मिक क्रिया लौकिक फल की इच्छा को लेकर नहीं की जाती बल्कि कर्मों के संवर या निर्जरा के लिए की जाती है। मुक्ति की इच्छा करना मिथ्या इच्छा नहीं कहलाती। निर्जरा के लिए की गई इच्छा-इच्छा नहीं मानी जाती किन्तु भोग के लिए जो इच्छा होती है। वही इच्छा वांछा मानी जाती है। जिनवाणी को माध्यम बनाकर व्यवसाय करना यह मिथ्या मार्ग है क्योंकि जिन्होंने सारे संसार संबंधी व्यवसाय से अपने आपको बचाने के लिए जिनवाणी की शरण ली और यदि उसी से व्यवसाय करने लगे तो फिर व्यवसाय की परंपरा कभी नहीं छूट सकती और संसार की परम्परा टूट नहीं सकती, कल्याण मार्ग को हम कभी पकड़ नहीं पायेगें। श्री कुन्दकुन्द भगवान् ने समयसार व्यवसाय के लिए नहीं लिखा है, किन्तु उन व्यवसाय संबंधी अध्यवसानों को मिटाने के लिए लिखा। जिस वक्ता की आजीविका श्रोताओं पर आधारित है, वह कभी भी सत्य का उद्घाटन नहीं कर सकता। सत्य का उद्घाटन करने के लिए बहुमत की कभी भी ओट नहीं लेना चाहिए। सत्य के लिए चुनाव नहीं करना चाहिए अन्यथा सत्य का बहुमान समाप्त जायेगा। सत्य के लिए बहुमत की नहीं, किन्तु बुधमत (बुद्धिमानों) की आवश्यकता होती है। मोक्षमार्ग में जो भी प्रवचन करते हैं, वे परमार्थ के लिए करें, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं। सांसारिक लोभ, लिप्सा से रहित होकर उपदेश देना चाहिए।