सन् 2005 ग्रीष्म काल के उपरांत कुण्डलपुर से अतिशय क्षेत्र बीनाबारहा क्षेत्र की ओर विहार हुआ। उस समय कोई कह रहा था कि- आचार्य श्री जी सागर जा रहे हैं और कोई कह रहा था जबलपुर में चातुर्मास होगा। विहार करते हुए गढ़ाकोटा आ गये। उस दिन बहुत तेज बरसात हुई सभी नली-नाले में पूर (बाढ़) आ गई। गढ़ाकोटा से पहली-पटनागंज की ओर विहार होना था। इन दोनों के बीच में एक चौरई नदी पड़ती है। समायिक के उपरांत आचार्य श्री जी दोपहर में रहली की ओर विहार करने लगे तब श्रावकों ने कहा- चौरई नदी पर बाढ़ आ गई है। कंधे तक पानी बह रहा है, संघ का निकलना संभव नहीं हो सकता लेकिन आचार्य श्री जी तो आचार्य श्री जी हैं। पटनागंज के बड़े बाबा की जय बोलते हुए विहार कर दिए। सभी लोग घबरा गए यह सोचकर कि आगे क्या होगा? नदी कैसे पार करेंगे? उस समय मुझे 102°c बुखार था। आचार्य श्री जी के साथ ही विहार कर रहा था। मुझे भी लग रहा था कि- बाढ़ एवं बुखार की स्थिति में नदी को कैसे पार कर सकेंगा?
आचार्य श्री जी संघ सहित जैसे ही नदी के पास पहुँचे नदी का पानी पहले जो कंधे तक जा रहा था अब घुटने तक रह गया। सारा संघ एवं श्रावकगण बड़ी आसानी से नदी को सहज पार कर गए और सभी लोग कहने लगे आचार्य श्री जी के दृढ़ संकल्प के सामने नदी को भी झुकना पड़ा। उस समय वह भजन याद आ गया कि- "सागर से गहरे, हिमालय से ऊँचे, इन्हें कौन रोके, इन्हें कौन बांधे।"
- 2
- 1