कुछ लोग अपने आपको भगवान मान बैठे हैं और कहते भी हैं। कि “भक्त नहीं भगवान् बनेगें।” ऐसे अध्यात्म प्रेमीजन भगवान की सच्ची भक्ति भी नहीं कर पाते एवं व्रत, नियम को अपने जीवन में स्थान नहीं दे पाते। वे व्यवहार धर्म को पूर्णतः छोड़कर निश्चय धर्म की चर्चा में अपना समय निकाल देते हैं लेकिन आचरण के बारे में कुछ नहीं सोचते ऐसे व्यक्तियों को उपदेश देते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- जिसका आदि, अन्त और मध्य नहीं है अर्थात् जो अथ से रहित हैं वे नाथ कहलाते हैं। यह बात सही है कि अपने आपको भगवान नाथ स्वीकार किए बिना अध्यात्म आ नहीं सकता लेकिन ऐसा भगवान एवं दुनिया के सामने मत कहो। जो भगवान के सामने ऐसा कहते हैं कि हम भक्त नहीं भगवान बनेगें तो क्या वे भगवान को चुनौती दे रहे हैं ?
व्यवहार में तो ऐसा ही कहना होगा कि हे भगवन! मैं अपने आपको भगवान कहता आया हूँ, अहंकार में डूबा रहा हूँ इसलिए आप ही इस अनाथ को संसार के दुःख से बचाओ, अपना जैसा बनाओ। फिर आचार्य श्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि- ऐसा कहो कि- न तो हम नाथ हैं और न ही अनाथ हैं हम तो अपने साथ हैं। तब मैंने कहा कि- हे गुरुवर! मैं तो ऐसा समझता हूँ कि में अनाथ हूँ, आप मेरे नाथ हैं और आप हमारे साथ हैं। यह सुनकर सभी लोग बहुत खुश हुए एवं आचार्य श्री जी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।