इस युग में कुछ लोगों की धारणा यह बन चुकी है कि पंचमकाल में धर्म नहीं हो सकता। कोई मुनि नहीं बन सकता यदि उनसे पूछा जाए आप ऐसा क्यों कहते हैं तो उनका तर्क होता है कि पंचमकाल में हीन संहनन होता है इसलिए कोई मुनि नहीं होते। धर्म तो चर्या में नहीं भावों में होता है।
समयसार ग्रंथ की वाचना के समय आचार्य श्री जी ने कहा कि बाहर से नग्न हुए बिना अंदर वीतराग परिणाम नहीं आ सकता। दिगम्बरत्व धारण किए बिना निश्चय रत्नत्रय निर्विकल्प समाधि की भावना नहीं हो सकती। द्रव्यलिंग नेगेटिव कॉपी है एवं भावलिंग पॉजिटिव कॉपी है जिस प्रकार नेगेटिव के बिना पॉजिटिव कॉपी नहीं बन सकती उसी प्रकार बाह्य चर्या के बिना अंतरंग में धर्म नहीं आ सकता। हाँ इतनी बात अवश्य याद रखें कि दुनिया आपको मुनि मानें और प्रशंसा करें लेकिन आप अपने आपको बड़ा न मानें एवं अपनी प्रशंसा स्वयं न करें यही मुनित्व है। जो वर्तमान में दिगम्बर मुद्रा का निषेध करते हैं उनके लिए आचार्य श्री जी ने समझाते हुए कहा कि द्रव्य लिंग को हमेशा ही उपेक्षित करना बुद्धिमत्ता नहीं कहलाती। यदि ऐसा करोगे तो समयसार का महत्त्व समझ में नहीं आ सकता जैसे- दीपक के बिना ज्योति नहीं जलती उसी प्रकार बिना द्रव्यलिंग के भावलिंग नहीं होता।
आचार्य श्री जी ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि एक बार एक सज्जन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पास आए और उन्होंने भी ऐसा ही प्रश्न किया आज काल के प्रभाव से धर्म नहीं। पलता तब आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने उनसे प्रतिप्रश्न करते हुए कहा- बताओ चतुर्थ काल में और पंचम काल में हलुआ बनाने की पद्धति में क्या अंतर है? तब उन्होंने कहा- जैसे उस काल में बनता था वैसे इस काल में बनता है। तब आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने कहा- उस पर काल का प्रभाव नहीं पड़ा ? यह सब काल के कारण नहीं है बल्कि आप लोगों का पुण्य घटने से है, भावों का प्रभाव है।
आचार्य श्री जी ने आगे कहा कि विदेह क्षेत्र के जीव यहाँ से मुक्त हो जाते हैं। मुनिराजों का अपहरण हो जाता है किसी ने लाकर भरत क्षेत्र में रख दिया उन्हें मुक्ति मिल जावेगी काल तो वही है। काल का प्रभाव है ऐसा कहना औपचारिक है। कालाणु तो असंख्यात थे, हैं, रहेंगे। आचार्य श्री जी ने हँसते हुए कहा कि- फिर भी समझ में नहीं आ रहा है तो कहना ही पड़ेगा कि- पंचम काल का प्रभाव है। एक बात हमेशा ध्यान रखो यह काल का नहीं घटिया भावों का प्रभाव है कि आप लोगों के मुनिधर्म पालन करने के भाव नहीं बनते और ऊपर से कहते हो कि काल के प्रभाव से आज कोई मुनि नहीं बन सकता। आप स्वयं निर्णय कर लो कि- काल दोषी है। कि आप एवं आपके भाव ?