किसी सज्जन ने आचार्य श्री से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि - ध्यान करने से क्या फायदा होता है ? तब आचार्य श्री ने कहा कि- ध्यान करने से स्वार्थ मिट जाता है एवं जीव परमार्थ की ओर बढ़ जाता है। आचार्य श्री जी ने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि एक व्यक्ति ध्यान के बारे में शोध कर रहे थे। जैन-जैनेत्तर सभी ग्रथों का अध्ययन किया एवं सभी साधकों से मिलने का पुरुषार्थ किया। कन्याकुमारी से हिमालय तक गये। वह अपने पास भी आये थे। सब लोगों ने अपनी-अपनी बात रखी। मैं भी ध्यान करता हूँ। स्थान-स्थान पर गया पर ध्यान के विषय में जो उत्तर मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। ध्यान के बारे में आपका क्या मन्तव्य है? सुख मिलेगा क्या? स्वर्गादि की प्राप्ति होगी क्या? या कोई और ध्यान का फल है? हमने कहा- ध्यान का परोक्ष और प्रत्यक्ष दो तरह का फल मिलता है। साक्षात् फल- निराकुलता की प्राप्ति होना व असंख्यात गुणी कर्म की निर्जरा होना। जिसका दृढ़ श्रद्धान हो। उसकी ही असंख्यात गुणी निर्जरा होती है। और दूसरा फल है मोक्ष की प्राप्ति होना।
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