आजकल व्यक्ति विज्ञान के युग में बहुत ही व्यस्त हो गया है। धन, स्त्री और भोजन में इतना आशक्त होता जा रहा है कि उसे धार्मिक कार्य करने का समय ही नहीं मिलता उसे धर्म तो फुर्सत की वस्तु लगने लगी है। कभी उसे जरूरत पड़े तो सामाजिक बंधनों के कारण धर्म को नौकरों के द्वारा करवाना चाहता है या औपचारिकता निभाकर चला जाता है।
किसी ने आचार्य श्री जी से पूछा कि- इस आधुनिक युग में व्यक्ति धर्म को फालतू क्यों समझने लगा है? तब आचार्य श्री जी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि- "मोह पालतू हो गया है इसलिए धर्म फालतू लगने लगा है।" आचार्य श्री जी ने आगे कहा कि- धार्मिक क्रियायें चाहे आहार दान हो, मुनियों का आहार-विहार हो या अभिषेक, पूजन आदि कार्य हो ये सब श्रावक को उत्तम भावों के साथ अपने हाथों से ही करना चाहिए। धार्मिक कार्य को अपने हाथ से करना उत्तम कार्य है, जबकि बेटे के हाथ से करवाना मध्यम है एवं नौकर आदि के हाथ से करवाना धर्म-कर्म को नष्ट करना है।