आचार्य श्री जी अपना समय हमेशा स्वाध्याय, ध्यान एवं आत्मचिंतन में व्यतीत करते रहते हैं। यदि कोई आत्मकल्याण करना चाहता है तो उसे मार्गदर्शन करने के लिए थोड़ा-सा समय दे देते हैं, क्योंकि आचार्य परमेष्ठी का परहित सम्पादन करना ही मुख्य गुण होता है। वे कभी किसी को अपना समय नहीं देते। यदि कभी मनोविनोद का मन होता है तो कुछ ऐसी बात कह देते हैं जिसमें हँसना भी हो जाता है और इसके बहाने मना भी हो जाती है एवं व्यक्ति को जीवनभर के लिए शिक्षा भी मिल जाती है।
एक बार ऐसा ही हुआ कि एक विद्वान ने आचार्य श्री जी से कहा कि- हमें आपसे कुछ चर्चा करने के लिए समय चाहिए। आचार्य श्री ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि- हमारे पास घड़ी तो है नहीं हम तुम्हें कहाँ से समय दे। घड़ी में हो समय तो घड़ी से मांग लो यह सुनकर सभी लोग हँसने लगे एवं सभी को एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा मिल गई कि अपना समय चर्चा में नहीं गँवाते हुए अपनी चर्या में लगाना चाहिए।