प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत का उपदेश देते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- उपवास करने से सामाजिक, शारीरिक एवं मानसिक तीनों प्रकार से लाभ होता है। दक्षिण में आटा चक्की को पन्द्रह दिन में एक बार बंद रखा जाता है विशेषकर अमावस्या को तो चक्की बंद रहती ही है। फिर आप लोग भी पन्द्रह दिन में, पर्वो के दिनों में उपवास अवश्य किया करो। अपने पेट की चक्की खाली रखा करो।
श्री धवलाजी ग्रंथ में लिखा है कि- उपवास शरीर के रोगों को दूर करता है और विकारी भावों को आत्मा से निष्कासित करता है। आचार्य श्री जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे शारीरिक चिकित्सा बिना उपवास के नहीं होती, वैसे ही आत्मा की चिकित्सा भी बिना उपवास के नहीं होती। जिस प्रकार पेट के ऑपरेशन के दिन उपवास करना पड़ता है तभी ऑपरेशन होता है। ठीक इसी प्रकार आत्मिक चिकित्सा करना चाहते हो, राग-द्वेष रूपी विकारी भावों को आत्मा से बाहर निकालना चाहते हो तो उपवास करना आवश्यक है।
वैज्ञानिकों ने भी कहा है- उपवास के दिन शरीर में एक विशेष ग्रंथि खुलती है, जिससे शरीर से रोग निष्कासित होते हैं, पाचन शक्ति बढ़ती है एवं शरीर में ताजगी भी आती है। तब किसी ने कहा- आचार्य श्री जी! कई लोग उपवास इसलिए नहीं करते क्योंकि वे सोचते है कि उनके चेहरे की चमक कम न हो जाए। यह सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- खाने-पीने मात्र से शरीर नहीं चमकता यदि ऐसा होता तो पशु-गाय, भैंस आदि तो हमेशा खाते रहते हैं, उनका शरीर भी चमकना चाहिए। उपवास का अर्थ होता है इन्द्रिय एवं मन का विषयों से हटकर आत्मा के पास आ जाना। आत्मा के बारे में सोचने लगता है।
जब उपवास के माध्यम से (बेला, तेला) कराके हाथी को भी जीवन भर के लिए वश में कर लिया जाता है तो फिर मन को भी वश में करना चाहते हो तो उपवास कीजिए। मन वश में हो जाएगा।