श्रावकाचार का स्वाध्याय कराते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि- श्रावक को सात्त्विक एवं अहिंसक व्यापार करना चाहिए जिससे बुद्धि, संस्कृति, समाज, राष्ट्र भ्रष्ट हो ऐसी वस्तुओं का व्यापार नहीं करना चाहिए। यदि गृहस्थ सच्चाई के रास्ते पर चलता है तो ही मोक्षमार्गी कहा जाता है। सात्त्विकता के अभाव में व्यवसायं करना है क्रूरता है, शोषण है। तब किसी ने शंका व्यक्त करते हुए कहा कि महाराज! झूठ आदि बोले बिना घर नहीं चलता? तब आचार्य श्री ने कहा- यदि पाप की कमाई के बिना तुम्हारा घर नहीं चलता तो ले जाओ चलाते-चलाते नरक तक, मैं क्या कर सकता हूँ? आगे आचार्य श्री जी ने कहा कि- मांस, शराब, अण्डा आदि के विज्ञापन लेना-देना भी सात्त्विक व्यापार नहीं कहलाते। सात्त्विक आचार-विचार एवं व्यापार के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती। आज बाजार की किसी भी वस्तु पर यह शाकाहारी ऐसा विश्वास नहीं किया जा सकता। पैसे के लोभ के कारण आज व्यवसाय गन्दा होता चला जा रहा है। ऐसा व्यापार करो जिससे- "मांसाहार का विरोध और शाकाहार का प्रचार हो "
अंत में आचार्य श्री जी ने कहा कि- जहाँ आपके बच्चे हॉस्टल आदि में पढ़ते हैं वह सरस्वती का मंदिर है। वहाँ आप लोगों को दिन में एवं शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था करवानी चाहिए ताकि आपके बच्चे बीमारी एवं कुविचारों से बच सकें।