छपारा नगर में पंचकल्याणक के समय की बात है| एक दिन आचार्य गुरूदेव कक्ष में सामायिक में बैठे हुए थे उसी समय कुछ जैनेतर बंधु आये और नमस्कार करते हुये गुरूदेव के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किया, दर्शन करके बहुत हर्षित हुए। साथ ही साथ वे कुछ अपने भावों को एक कागज में लिखकर लाये थे। चूँकि आचार्य श्री जी सामायिक में बैठे हुए थे, सज्जन ने उनके हाथों पर कागज रखा और नमस्कार करके चले गये।
सामायिक पूर्ण होने के उपरान्त आचार्य श्री ध्यान मुद्रा से उठे तब सभी महाराज जी वहाँ पहुँचे, वहाँ देखा कि गुरूवर के हाथों पर एक कागज रखा हुआ है। आचार्य श्री जी ने कहा वे यह नहीं जानते कि महाराज सामायिक कर रहे हैं, वे तो मात्र यही जानते हैं कि भक्तिभाव पूर्वक नमस्कार करना चाहिए। एक चरण कमल होते हैं और एक करकमल होते हैं, इसलिये दोनों का उपयोग करके, लाभ उठाकर चले गये।