जैसे घर परिवार में भाई-बहिन रहते हैं, बड़ी बहन की बात छोटे भाई मानते हैं और बहन के कारण भाई का महत्व बढ़ जाता है, बहन दोनों कुलों को उज्ज्वल करती है, भाई के कुल को एवं पति के कुल को, दोनों कुलों को मंगल सिद्ध होती है इसलिए उभय कुल मंगल वर्धिनी हो जाती है और यदि वही दीक्षा ले लेती है तो "लोक मंगल वर्धिनी" सिद्ध होती है।
इसी बात को समझाते हुए गुरूदेव ने कहा - "आस्था बहन है, और ज्ञान, चारित्र उसके दो भाई हैं। भाईयों का महत्व बहन से बढ़ जाता है, आस्था (सम्यग्दर्शन) के प्राप्त होते ही ज्ञान, चारित्र सम्यक हो जाते हैं, पूज्यनीय एवं स्वर्ग, मोक्ष के कारण हो जाते हैं। यह आस्था रूपी बहन ज्ञान और चारित्र दोनों के महत्व को बढ़ा देती है, इसलिए यह आस्था भी "उभय कुल मंगल वर्धिनी है। इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आस्था को निर्दोष बनाने का प्रयास करना चाहिए एवं घर, परिवार, कुल को उज्ज्वल बनाने के लिए बहनों को अपना जीवन निर्दोष व्यतीत करना चाहिए। ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे कुल, परिवार के लोग ऊंचा सिर उठाकर न चल सकें। एक बात हमेशा याद रखें "यदि हम माता-पिता की इज्जत बड़ा नहीं सकते तो कभी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे माता-पिता की इज्जत कम हो।”