भोजपुर में अष्टमी के दिन आचार्य श्री जी ने केशलौंच किया। तदुपरान्त जंगल की ओर चले गये। थोड़ी देर बाद मैं भी जंगल गया वहाँ देखा पूज्य गुरूदेव एक बड़ी शिला पर विराजमान हैं, दोनों हाथ जोड़े हुए आँख बंद किये हुए कुछ पाठ पढ़ रहे हैं। मैं उनके समीप में ही पहुँच गया। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने उनके दर्शन करके सब कुछ पा लिया हो साक्षात् चतुर्थकालीन दृश्य, हृदय गद्गद् हो उठा। उसी शिला पर नीचे की ओर मैं भी हाथ जोड़कर बैठ गया आचार्य महाराज लगातार अनेक बार एक ही कारिका का पाठ कर रहे थे वह कारिका थी -
सर्वं निराकृत्य विकल्प जालं, संसार कान्तार निपात हेतुम्।
विविक्तमात्मान मवेक्षमाणो, निलीयसे त्वं परमात्म तत्त्वे //29 //
यह सामायिक पाठ की कारिका है। थोड़ी देर बाद गुरूदेव ने आँखें खोली, बोले- क्यों तुम आ गये, मैंने हाथ जोड़कर कहा कि आचार्य श्री मैं आ गया। हमारा सौभाग्य है कि जिन कारिकाओं को गुफाओं में, जंगलों में बैठकर आचार्यों ने लिखा होगा उन्हीं कारिकाओं को आचार्य महाराज के श्री मुख से इन्हीं शिलाओं पर बैठकर सुन रहा हूँ। आचार्य महाराज जी कहते हैं, हाँ जो कारिकायें अच्छी लगती हैं उनका मैं बार-बार पाठ करता हूँ, उन कारिकाओं की माला भी फेर लेता हूँ। कम से कम अपन इन कारिकाओं का पाठ ही कर लें। यह सुनकर ऐसा लगा मानों आचार्य महाराज का जिनवाणी के प्रति, पूर्वाचार्यों के प्रति कितना बहुमान है। शायद यही कारण है उनके प्रत्येक शब्द में सागर जैसी गहराई दिखाई देती है। उनके प्रत्येक वाक्य मंत्र का काम करते हैं। जीवन में नई प्रेरणा एवं उमंग भर देते हैं ।
आगे उन्होंने बताया कि यह संसार विकल्पों का जाल है और विकल्प संसार के कारण हैं, इन्हें छोड़कर आत्मरथ होना चाहिए। निर्विकल्प होना चाहिए। तभी संसार से मुक्ति मिल सकती है ।