द्रव्य संग्रह ग्रन्थ की वाचना के समय जीव द्रव्य का व्याख्यान करते हुए आचार्य महाराज ने कहा कि - जीव द्रव्य दिखता तो नहीं पर उसे महसूस किया जा सकता है। स्वयं आत्म तत्व का संवेदन किया जा सकता है। अपनी पहचान तो अपनी है। ज्ञान सागर जी महाराज हमें कुछ समझाते थे तो हिन्दी में बोलकर समझाते थे, उस समय हमें हिन्दी भाषा समझ में नहीं आती थी। तो महाराज जी कहते थे कि - बोलो, तो हम सोचते थे क्या बोलें हिन्दी तो आती नहीं। अपनी पहचान तो अपनी है। दूसरों को क्या बतायें। इसी प्रकार हम जीव हैं यह मेरी पहचान है तो दूसरों को क्या बतायें - "अपनी पहचान तो अपनी है।"