रत्नकरण्डक-श्रावकाचार की कक्षा में रात्रि भोजन त्याग का व्याख्यान करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि पहले जैनी लोग राज दरबार में कोषाध्यक्ष जैसे बड़े-बड़े विश्वस्त पदों पर नियुक्त किये जाते थे| उन जैनी भाईयों को सारे राज्य में विश्वस्त एवं ईमानदार माना जाता था और रात्रि होने से पूर्व ही उन्हें राज्यसभा से छुट्टी मिल जाती थी, क्योंकि उनका रात्रि भोजन का संकल्पपूर्वक त्याग रहता था। इसलिए राजा भी उनकी धर्म, नियम के प्रति निष्ठा देखकर उन नियमों को पालन करने में उनका सहयोग देते थे। पहले जैनियों के संकल्प के प्रति इतनी आस्था और निष्ठा रहती थी, लेकिन बड़े दुःख की बात है कि आज जैनी भाई स्वयं कह देते हैं कि मुझे रात में सब चलता है और यदि रात्रिभोजन त्याग का नियम भी लेते हैं तो बाहर की छूट रखते हैं। यह एक अफसोस की बात है कि आज जैनी स्वयं अपना स्वाभिमान खोते चले जा रहे हैं।