गर्मी का समय था। दिन में गरम लू चलती थी एवं जमीन भी गरम रहती थी। तापमान लगभग 45 डिग्री के ऊपर ही होगा। उन दिनों सारा संघ विदिशा नगर के स्टेशन मंदिर में विराजमान था। आचार्य महाराज न कभी सर्दी देखते, न गर्मी। जब जो आवश्यक कार्य होते हैं। उसे उसी समय कर लेते हैं। वे तो उत्कृष्ट चर्या के धनी हैं, हमेशा दो माह के भीतर-भीतर ही केशलोंच कर लेते हैं। उन्होंने हमेशा की भांति दो माह हो गये तो उस दिन केशलोंच कर लिया।
आश्चर्य की बात है इतनी गर्मी थी लेकिन उस दिन बादल छा गये रात में पानी भी गिरने लगा। ऐसा लगा मानो देवता और प्रकृति उनकी साधना को देखकर उनका सहयोग कर रहे हों। मौसम एकदम ठण्डा हो गया। प्रातः काल गुरुदेव के चरणों में नमोऽस्तु करते हुए कहा कि- आचार्य श्री जी! आपने केशलोंच किया था इस कारण से देवताओं ने वर्षा कर दी। प्रकृति शीतलता से भर गयी। वैसे भी आचार्य श्री कभी अपनी प्रशंसा सुनते ही नहीं, प्रशंसा के प्रकरण को टाल देते हैं। हँसकर बोले कि - आप लोगों ने भावना भायी होगी तभी तो ऐसा हुआ है, ये सब आप लोगों की भावनाओं का फल है। तब मैंने तत्काल हाथ जोड़कर कहा - नहीं, आचार्य श्री! ये सब आपकी साधना का, संकल्प की शक्ति का परिणाम है। यह सुन आचार्य श्री मुस्कुरा दिए............ कुछ बोले नहीं..... चुप रह गये।
यह उनकी तप साधना का अतिशय साक्षात् हम सभी अपनी आँखों से देखते हैं तब लगता है हम लोगों का कितना सौभाग्य है जो ऐसे गुरु मिल गये।
(8 अप्रैल 2002 विदिशा)